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Reducing police torture against Muslim at Grass root level by engaging and strengthening Human Rights institutions in India

Friday, October 5, 2012

साम्प्रदायिक पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ अलीगढ जन घोषणा पत्र

साम्प्रदायिक पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ अलीगढ जन घोषणा पत्र
मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा यूरोपियन यूनियन के सहयोग से अलीगढ, मुरादाबाद, मेरठ और वाराणसी मे चल रहे परियोजना  'भारत में मानवाधिकार संस्थाओं को शामिल करके और उन्हे मजबूती देकर जमीनी स्तर पर मुस्लिमों के खिलाफ पुलसिया यातना में कमी लाना' के अन्तर्गत सन्दर्भ समूह वार्तालाप (Focus Group Discussion) का आयोजन किया गया। जिसका विषय "भारत मे मुस्लिमो पर बढते पुलिसिया उत्पीडन और मुसलमानो की वर्तमान स्थिति और सुधार के उपाय" था। जिसमे मुस्लिमो के हितो पर कार्यरत मानवाधिकार संगठन, मानवाधिकार कार्यकर्ताओ, मीडीयाकर्मी और प्रबुद्ध लोगो ने हिस्सा लिया। वार्तालाप भारत मे मुस्लिमो पर हो रहे धर्म के नाम पर पुलिसिया अत्याचार को कम करना और उन्हे इन चुनौतियो का कैसे सामना करने हेतु तैयार करना। साथ ही मुस्लिमो की स्थिति के विषय मे क्या सोच है और कैसे मुलस्लिम समुदाय का विकास हो सकता है पर चर्चा हुयी । सभी ने अपने नाम के साथ अपने काम का अनुभव भी बताया।
आनन्द जी (जिला महासचिव बसपा) ने कहा कि हर समाज मे आतंकवादी व अपराधी है लेकिन राजनीति और पुलिस प्रशासन के कारण विशेष समुदाय को ही बदनाम किया जाता है। दंगा मे केवल मुस्लिम समुदाय का उत्पीडन करके पुलिस वाले धन उगाही करते है। झूठे केस मे फसाने के नाम पर वसूली करते है। यदि कही पर दंगा होता है तो उसके जिम्मेदार पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी होने चाहिये और उन्हे भी दण्ड मिलना चाहिये। साथ ही मीडिया को भी प्रशासन की ओर ही फोकस करना चाहिये। क्योकि किसी भी दंगे की जिम्मेदार वहा के पुलिस प्रशासन ही होते है। जो इतने ताकत के बाद भी दंगा होने से नही रोक पाते है। प्रशासन और शासन के ड्रामा के कारण ही हिन्दू-मुस्लिम समाज का शोषण होता है उन्हे धोखा दिया जाता है, इसमे सबसे ज्यादा दोषी पुलिस के मुखबिर होते है, उन्ही की सुचना पर पुलिस दबिश देती है। उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज होनी चाहिये। न्यायालय की प्रक्रिया बहुत धीमी है तब तक साक्ष्य ही खत्म हो जाते है। आगे उन्होने यह सुझाव दिया कि अगर पुलिस अधिकारी 100 दिन मे निस्तारण और 90 दिनो मे विवेचना नही करता तो उस पर आर्थिक दण्ड लगाया जाय और उसका प्रमोशन रोका जाय।
आबिद अली (पत्रकार) ने कहा कि यदि मीडिया अपना रोल सही तरीके से निभाये तो कुछ हद तक मुस्लिमो पर पुलिस अत्याचार रोका जा सकता है। लेकिन मीडिया केवल फोकस केस ही छापती है। पुलिस केस को फोकस करती है और आम जनता फोकस नही करती। यदि किसी पुलिस उत्पीडन के केस को जनता फोकस करती है तो मीडिया उसे जरूर छापती है। ऐसा नही होता इसलिये पुलिस के खिलाफ कोई बोलता नही है इसलिये बहुत सी खबरे सामने नही आ पाती है।
जाकिर अली (लेखक) ने कहा कि आज सभी लोग यह जानते है कि थाने और चौकिया बिकती है। पुलिस वाले पैसे देकर अपना पोस्टिंग अपने मन चाहे थाने या चौकी मे कराते है। उसके बाद जनता से धन उगाही करते है। यह भी सत्य है कि आज जानबूझ कर हिन्दू धर्म के उच्च जाती के पुलिस वाले अपना ट्रान्सफर मुस्लिम क्षेत्र मे करवाते है, ताकि वे मुस्लिम समुदाय मे दहशत फैला कर अवैध धन वसूली कर सके। यह समुदाय पिडित है इसलिये समुदाय के लोगो को बडे स्तर पर जोडा जाय।   
जावेद जी (समाज सेवी व अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्टाफ) हर दिल मे मानवाधिकार की लौ जले और कदम आगे बढे तब हम लोग भ्रष्टाचार व उत्पीडन को खतम कर सकते है। आज सब कुछ प्राईवेट हो रहा है तब थाने को भी प्राईवेट कर देना चाहिये। जब सफेदपोशो की चेन टूटेगी तब जाकर समुदाय बचेगा और अन्य समुदाय के साथ स्वस्थ्य सामंजस्यता होगी। पुलिस वालो कई शक्ति का विभाजन करके कम करना चाहिये। पुलिस का नजरिया मानवाधिकार संगठन और लोगो के प्रति प्रतिकूल है।  
रागिब अली (समाज सेवी व अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्टाफ) ने कहा कि जब तक पीडित व्यक्ति का खोया हुआ सम्मान को फिर से समाज के सामने सम्मानित नही किया जायेगा, तब तक चुप्पी नही टूटेगी। क्राईम की व्यवस्था को आनलाईन कर देना चाहिये। साथ ही 72 घण्टे मे साक्ष्य प्रस्तुत करना अनिवार्य होना चाहिये। सभी स्तर के न्यायालय की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिये और उसी समय सीमा के अंतर्गत निर्णय होना चाहिये। अगर ये व्यवस्था लागू होती है तो 75% मामले पुलिस के हाथ से निकल जायेगा और झूठे केसो की संख्या कम हो जायेगी। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो मे शिक्षा संस्थान होने चाहिये। जिस मामले मे पीडित मुकद्दमा जीतता है और यह तय होता है कि पुलिस ने झूठे मामले मे फसाया था उस मामले मे दोषी पुलिस वाले की तंख्वाह से मुआवजा दिलवाना चाहिये। थाने मे भी समुदाय के साथ प्रति सप्ताह बैठक होनी चाहिये।
एम. यू. खान (राष्ट्रीय समाज सेवा समिति के प्रमुख व उर्दू अखबार मे मुख्य सम्पादक) ने कहा कि जल्दी रिश्वत की जननी है। ब्रिटिश समाज से ही हमारा सिस्टम खराब है और मानव विरोधी है। अब तक उसमे कोई भी परिवर्तन नही हुआ। जैसे MV Act के अंतर्गत जो कार्यवाही होती है उसमे केवल 6 महीने की सजा का प्रावधान है। उस समय केवल अंग्रेज या बडे लोग ही गाडी चलाते थे इसलिये ऐसी कानून बनाये गये थे जो आज भी उसी अवस्था मे है कोई बदलाव नही हुआ। हमे आर. टी. आई व वोट का अधिकार मिला है जिससे खाकी और खादी, ब्युरोक्रेसी हिल जाती है. आर. टी. ई. कानून ने स्कूलो की नीद खराब कर दी है। पुलिस की गल्ती और लापरवाही पर सजा मिले और पीडित का पुनर्वासन हो। हर मानवाधिकार कार्यकर्ता सक्षम, जागरूक, अधिकार और जिम्मेदारी के प्रति सजग होना चाहिये। हमे सीखकर चेन बनानी है जिससे सभी हमारे जैसे हो। हमे राजनैतिक पार्टियो के साथ भी बैठक करनी चहिये क्योकि सरकार बदलते ही पुलिस प्रशासन महकमा बदल जाता है क्योकि सरकार क हर क्षेत्र मे दबदबा हो। मुस्लिम समुदाय के विकास के लिये कई योजनाये चल रही है लेकिन सरकार उसका प्रचार-प्रसार नही करती। लाभार्थी परिवारो पर ध्यान देते हुये आवेदन पत्र भेजने की जरूरत है। दलालो का शिकार न हो। योजनाओ एवम योजना विभाग की जानकारी हो। भ्रम व अफवाह मे न पडकर अपनी जानकारी बढाये और दूसरो तक भी सही जानकारी पहुचाये। योजनाओ की सही और पूरी जानकारी के लिये आर. टी. आई(सूचना का अधिकार) का प्रयोग करे।
सितारा बेगम (समाज सेवी) ने कहा कि आज समाज मे ऐसी धारणा बन गयी है कि नाम ही गुनाह हो जाता है। आज पुलिस जब थाने मे किसी को लेकर जाती है तब तुरंत उसके खिलाफ एफ. आई. आर दर्ज नही करती, बल्कि पैसे मिलने का इंतजार करती है। यदि पैसे मिल जाते है, तो उसे छोड दिया जाता है और यदि पैसे नही मिलते तो उसका चालान कर दिया जाता है और तब तक कई दिन उसे थाने पर ही बैठाया जाता है। आज मुस्लिम समुदाय पढा लिखा नही है जिसके कारण जब वह अपने बच्चो का स्कूल मे दाखिला करवाने जाता है तब उस्के बच्चे का दाखिला यह कर नही किया जाता कि बच्चे के माता-पिता पढे नही है। मुसलमान होने के नाते एफ आई आर तक नही लिखा जाता। अक्सर पुलिस समुदाय मे रात मे दबिश देती है और पूरे समुदाय को दोषी बना देती है। साथ ही जो पैरवी करने जाता है उसे भी धमकी देते है कि तुम्हे भी किसी केस मे फसा देंगे। हमे भी आधुनिक तरीके सीखकर उनसे मुकाबला करने की जरूरत है। मानवाधिकार संरक्षण की शिक्षा के लिये मार्गदर्शन की जरूरत है इसे बडे पैमाने पर प्रचार प्रसार की जरूरत है.
अनीशा (समाज सेवी) ने कहा कि हर स्तर की समुदाय की महिलाओ के अन्दर डर बैठा हुआ है। इसलिये अपने अन्दर के डर को खत्म करे और आत्मविश्वास बढाये तभी सुधार होगा। हमने जो भी शिक्षा और जानकारी प्राप्त किया है उसे दूसरो तक पहुचाये। महिला कार्यकर्ता समुदाय और परिवार से हमेशा प्रताडित होती है। उन्हे भी समझाने की जरूरत है। हमे धीरे धीरे मुस्लिम समाज मे शिक्षा के लिये लोगो को प्रोतसाहित करना होगा साथ ही सरकार से शिक्षण संस्थान खोलने हेतु दबाव भी बनाना होगा। मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओ की सन्युक्त बैठक हर क्षेत्र मे आयोजित होनी चहिये जिससे दोनो के बीच मे आपसी तालमेल बढे और मुद्दे को आगे लडाई का रूप दिया जा सके।
सन्दर्भ समूह वार्तालाप (Focus Group Discussion) मे निम्न लिखित मांग निकल कर सामने आयी –
1.       सभी स्तर के न्यायालय मे समय सीमा तय की जाय।
2.       पुलिस सभी दर्ज मामलो को 24 घण्टो मे आन लाईन करे।
3.       72 घण्टे मे साक्ष्य प्रस्तुत करने की व्यवस्था की जाय।
4.       मुस्लिम क्षेत्रो मे शिक्षण संस्थान खोले जाय।
5.       धर्म के नाम पर पुलिस द्वारा की गयी एकतरफा कार्यवाही यदि सिद्ध होती है तो उसे सजा दी जाय।
6.       मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मे सम्वेदित और समबन्धित समुदाय के अधिकारी की ही नियुक्ति की जाय।
7.       किसी भी दंगे की जिम्मेदार वहा के पुलिस प्रशासन ही होते है। जो इतने ताकत और संसाधन के बाद भी दंगा होने से नही रोक पाते है इसलिये किसी भी दंगे मे वहा के प्रशासन और सम्बन्धित पुलिस अधिकारी के उपर भी मुकद्दमा दर्ज किया जाय।  
8.       अगर पुलिस अधिकारी 100 दिन मे निस्तारण और 90 दिनो मे विवेचना नही करता तो उस पर आर्थिक दण्ड लगाया जाय और उसका प्रमोशन रोका जाय।
9.       जिस मामले मे पीडित मुकद्दमा जीतता है और यह तय होता है कि पुलिस ने झूठे  मामले मे फसाया था उस मामले मे दोषी पुलिस वाले की तंख्वाह से मुआवजा दिलवाना चाहिये।
10.   थाना दिवस की तर्ज पर थाने मे भी समुदाय के लोगो साथ प्रति सप्ताह बैठक होनी चाहिये।
11.   किसी  भी आतंकी घटना को विशेष समुदाय से जोडकर प्रमुखता न दिया जाय बल्कि दोषी के नाम, संगठन या अज्ञात को प्रमुखता दी जाय।  
12.   थानो को भय मुक्त बनाया जाय ताकि कोई भी व्यक्ति बिना डर के थाने जा सके और अपनी शिकायत दर्ज करा सके।
13.   पुलिस की भी मानवीय सम्वेदना पर ट्रेनिंग होनी चाहिये। ताकि पुलिस वाले आम जनता से ठीक से बात करे गाली या धमकी ना दे।
14.   मीडिया को भी समुदाय विशेष पर खबर छापने पर रोका जाय।   
                           
मै चुप रहा तो और गलतफहमियाँ बढी,
वो भी सुना है उसने जो मैने कहा नही।
-    बशीर बद्र



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