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Reducing police torture against Muslim at Grass root level by engaging and strengthening Human Rights institutions in India

Thursday, May 31, 2012

कितने सुरक्षित हैं अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार !

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कितने सुरक्षित हैं अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार !

By | May 31, 2012 at 9:06 pm | No comments | कुछ इधर उधर की

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

उत्पीड़न के शिकार  अहिंदू अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार भारतीय गणतंत्र में कितने सुरक्षित है, इसकी कायदे से खोज पड़ताल की जाये तो हैरतअंगेज नतीजे सामने आते हैं। हिंदुत्व की विचारधारा सरकार और प्रशासन के हर स्तर पर इतने महीन तरीके से काम कर रही है कि वंचितों खासकर अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए न्याय सबसे दुर्लभ हो गया है। असमानता और वैषम्य अपनी जगह है, लेकिन पीड़ितों के साथ भेदभाव की स्थिति सबसे भयावह है।

वैषम्य के खिलाफ स्वतंत्रता से पूर्व देश भर में दलित मूलनिवासी आंदोलन के तेज होने के बाद हिंदुत्व की विचारधारा सामने आयी जिसका अंतिम लक्ष्य हिंदू राष्ट्र है और घोषित शत्रू गैर हिंदू तमाम जमात शासकर मुसलमान और ईसाई है। पर वास्तव में यह मनुस्मृति व्यवस्था के लिए अछूतों और पिछड़ों के बिना शर्त समर्थन हासिल करने और उसे जायज ठहराने की अचूक रणनीति है। आरक्षण विरोधी आंदोलनों, सिखों के नरसंहार, राम मंदिर आंदोलन और गुजरात नरसंहार के जरिये हिंदुत्व की विचारधारा  और आंदोलन को नई शक्ति और ऊर्जा मिली है। बाबासाहेब अंबेडकर के आर्थिक विचारों का परित्याग करके आईडेंटीटी पालिटिक्स और सोशल इंजीनियरिंग में भागेदारी के परिमाम स्वरूप दलित और मूलनिवासी आंदोलन हाशिये पर है और अलग अलग द्वीपों में बंटा है, जिसका मामूली असर भी नहीं है। समाज और संस्कृति के ब्राह्मणीकरण, खुला बाजार की अर्थव्यवस्था और संसाधनों पर ब्राह्मणी वर्चस्व से अछूत, आदिवासी और पिछड़े समुदायों के बड़े अंश ने हिंदुत्व की विचारधारा के आगे आत्म समर्पण कर दिया है। इसलिए मनुस्मृति व्यवस्था पूरी तरह सुरक्षित हो गयी है और निशाने पर अल्पसंख्यक हैं। हिंदुत्व आंदोलन ने मुसलमानों और दीगर अल्पसंख्यकों के प्रति लगातार जो घृणा अभियान छेड़ा हुआ है, उससे सामाजिक न्याय और जाति उन्मूलन के मुद्दे गैर प्रासंगिक हो गये हैं। अंबेडकर की पूजा होती है जिससे हिंदुत्व के एजंडे को कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन अंबेडकर की विचारधारा को कचरापेटी में डाल दिये जाने के नतीजतन आज दलित आदिवासी और पिछड़े हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक मुसलमानों, ईसाइयों और  दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ लाम बंद हैं।

सरकारी कामकाज और प्रशसन के बर्ताव में इसका गहरा असर हुआ है। १९८४ में आपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखविरोधी हिंसा में इस प्रवृत्ति की खतरनाक अभिव्यक्ति हुई थी, जो गुजरात नरसंहार में दोहरायी गयीं। पर देश की सिविल सोसाइटी, मीडिया, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने लगता है कि हिंदुत्व की दलित आदिवासी पिछड़ा विरोधी मनुस्मृति पोषक हिंदुत्व की सांप्रदायिकता की मार्केटिंग का कायदे से विश्लेषम नहीं किया। उत्तर प्रदेश में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से मनुस्मृति विरोधी राजनीति में हिंदुत्व का वर्चस्व कायम होने लगा है, जिससे उत्तर प्रदेश समेत समूचे उत्तर भारत में अल्पसंख्यकों का जीना हराम हो गया है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना ससंद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पांच धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिषत 18.42 है ।
भारत के गृह मंत्रालय के संकल्प दिनांक 12.1.1978 की परिकल्पना के तहत अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि संविधान तथा कानून में संरक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता एवं भेदभाव को महसूस करते हैं । इस क्रम में धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखने के लिए तथा राश्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों को लागू करने पर विशेष बल दे रही है तथा समय-समय पर लागू होने वाली प्रशासनिक योजनाओं, अल्पसंख्यकों के लिए संविधान, केंद्र एवं राज्य विधानमंडलों में लागू होने वाली नीतियों के सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु प्रभावषाली संस्था की व्यवस्था करना। वर्ष 1984 में कुछ समय के लिए अल्पसंख्यक आयोग को गृह म़ंत्रालय से अलग कर दिया गया था तथा कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत नए रूप में गठित किया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना ससंद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पांच धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिषत 18.42 है ।
इस सिलसिले में मानवाधिकार जन निगरानी समिति के अध्ययन गौरतलब है:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित विशेष कांग्रेस अधिवेशन को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सांप्रदायिक ताक़तों पर कटु हमला किया था. उन्होंने कहा था कि वे सभी संगठन, विचारधाराएं एवं व्यक्ति, जो हमारे इतिहास को तोड़ते-मरोड़ते हैं, धार्मिक पूर्वाग्रहों को हवा देते हैं और धर्म के नाम पर आमजनों को हिंसा करने के लिए उकसाते हैं, देश के लिए विनाशकारी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने हमेशा हर प्रकार की सांप्रदायिकता से लोहा लिया है, चाहे उसका स्रोत कोई भी संगठन रहा हो। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की सांप्रदायिकता में कोई फर्क़ नहीं है और देश के लिए दोनों ही बराबर ख़तरनाक हैं। सोनिया के इस बयान पर प्रसिद्ध चिंतक राम पुनियानी जी का मंतव्य गौर तलब है। उन्होंने कहा है कि यद्यपि यह वक्तव्य स्वागत योग्य है, परंतु अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक वर्गों की सांप्रदायिकता के बीच कोई विभेद न करने का सोनिया गांधी का दृष्टिकोण उचित नहीं जान पड़ता। सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष को उनके पति के नाना एवं आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू के विचार याद दिलाना आवश्यक है। पंडित नेहरू ने कहा था कि यद्यपि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक, दोनों ही वर्गों की सांप्रदायिकता बुरी है, तथापि बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता देश के लिए कहीं अधिक घातक है, क्योंकि वह राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़े रहती है। अल्पसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता अधिक से अधिक विघटनकारी प्रवृत्तियों को जन्म दे सकती है। वह बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता को भड़काती भी है और उसे वे बहाने देती है, जिनके सहारे उस वर्ग विशेष के सांप्रदायिक तत्व अपनी गतिविधियां बढ़ाते जाते हैं. लेकिन यह मानना अनुचित होगा कि अगर अल्पसंख्यक वर्ग न भड़काए तो बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिक ताक़तें निष्क्रिय रहेंगी। वे तब भी वही करेंगी, जो भड़काए जाने पर करती हैं.अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक सांप्रदायिकता को एक ही पलड़े पर तौलना कांग्रेस की उन धर्मनिरपेक्ष नीतियों के विरुद्ध है, जिनकी नींव पंडित नेहरू ने रखी थी। हमारे देश में सांप्रदायिक राजनीति और सांप्रदायिक हिंसा दोनों के पीछे बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता है। बहुसंख्यक सांप्रदायिकता का प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, उसने समाज के सोचने के तरीक़े को बदल दिया है, उसने देश का ध्यान आम लोगों की मूल आवश्यकताओं से हटाकर राम मंदिर जैसे अनावश्यक मुद्दों पर केंद्रित कर दिया है। शाहबानो मामले को अल्पसंख्यक सांप्रदायिक ताक़तों ने बहुत उछाला था और इससे निश्चित रूप से देश को हानि हुई थी, परंतु यह हानि राम मंदिर आंदोलन के कारण देश को हुए नुक़सान के सामने कुछ भी नहीं थी। राम मंदिर आंदोलन ने पहले समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित किया, फिर बाबरी मस्जिद को ढहाया और उसके बाद देश भर में मुसलमानों के ख़िला़फ भयावह हिंसा की। अलबत्ता दोनों प्रकार की सांप्रदायिकता में कुछ समानताएं भी हैं. दोनों ही सामंती और मध्यम वर्ग के हितों की पैरोकार हैं। ये वे वर्ग हैं, जो अपने विशेषाधिकार और समाज में अपनी उच्च स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं।

इसके उलट हिंदुत्ववादी दलील कुछ इस तरह होती है:
आज इस्लाम को आतंकवाद के घिनौने शब्द से विश्व-बिरादरी जोड़कर देख रही है। विभिन्न हिस्सों में पनप रहे आतंक के स्वरूप में अधिकांश संगठन "जिहाद" के नाम पर, मजहब के नाम पर मुसलमानों के जहन में नफरत पैदा कर उन्हें अतिवादी सोच की ओर ढकेल रहे हैं। कभी पश्चिमी सभ्यता के खिलाफ, कभी भारतीय संस्कृति के खिलाफ बरगला कर अपने नापाक मन्सूबों को अन्जाम दे रहे हैं। चन्द कट्टरपन्थी तन्जीमे आतंकवादी घटनाओं के जरिये विश्व सभ्यता को नष्ट करने में जरा भी हिचक नहीं दिखा रही हैं। अधिकांश घटनाओं में मुस्लिम कट्टरपन्थी संगठनों का हाथ होने के कारण, विश्व के अधिकांश मुखिया इन्हें "इस्लामी आतंकवाद" का नाम देकर सारे मुसलमानों को एक ही नजरिये से देख रहे हैं।

हालांकि भारत में मुस्लिम वर्ग की स्थिति अन्य देशों से बेहतर है उन्हें लोकतन्त्र में सारे अधिकार प्राप्त है जो बहुसंख्यकों को मिले हुए हैं। बावजूद इसके कहीं न कहीं कट्टरपन्थियों का दबाव समाज पर कुछ हद तक अभी भी बरकरार है। इसी वजह से स्वतन्त्रता के पश्चात आज भी ये वर्ग कुछ खास तरक्की न कर सका। इस गंगा-जमुनी संस्कृति में समाज के अनेक पहलुओं पर बिना समझौता किए, विवेक व सहनशीलता के बिना सामाजिक समरसता व सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन काम है।

यही मुस्लिम समाज की प्रगति में बाधक हो रहा है। इसके बिना इस एक तबके को मुख्य धारा में जोड़ना निश्चय ही एक विचारणीय प्रश्न है। जम्मू-कश्मीर में वर्षो से सीमापार आतंकवादी घटनाओं तथा पूर्व में मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, दिल्ली की तमाम वारदातों से भारतीय मुस्लिम समाज के अन्य तबकों से एक बार पुन: उपेक्षित सा हो गया है। लोगों में मुसलमानों के प्रति सदैव एक आशंका बनी रहती है, इसी कारण मुस्लिम भी अपने को असुरक्षित व असहज महसूस करने लगा है, उसके विश्वास में कमी आई है। अत: आवश्यकता है आज ऎसे मुस्लिम समाज की जो इस्लामिक शिक्षाओं का अनुकरण कर मानवीय मूल्यों पर आधारित ऎसा ढांचा तैयार करे जो अपने पड़ोसियों का दिल जीत सके। आपस में शांति व सहयोग के जरिये आत्मविश्वास जाग्रत कर सके। शंकाओं का निवारण मिल बैठ कर हो। जब भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक के समान सारे अधिकार देता है तो अल्पसंख्यकों को भी राष्ट्रीय मसलों पर बहुसंख्यक वर्ग की आस्था का ध्यान रखकर उसे राजनैतिक व सांप्रदायिक नजरिये से न देखते हुए देशहित में जो सही हो, उस पर हम सब की मंजूरी होना चाहिए।
भारत सरकार पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले पर तो मुखर हो जाती है पर भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध निरंतर जारी घृणा अभियान और सांप्रदायिकता के खिलाफ खामोशी बरतते हुए नरम हिंदुत्व के जरिये वोट बैक राजनीति साधती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की घटनाएं भारत में मुसलमानों के प्रति हर बार नये सिरे से घृणा अभियान शुरू करने के मौके बनाती है। मसलन  पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर उनकी इच्छा के खिलाफ मुस्लिम लड़कों से शादी कराये जाने और मंदिर एवं गुरूद्वारों को अपवित्र करने की खबरों पर भारत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह पड़ोसी देशों की सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभायें। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इस बारे में लोकसभा में दिये बयान में कहा कि इस विषय को पड़ोसी देश की सरकार के साथ पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है। पाकिस्तान में, खासतौर पर सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न तथा उन्हें धमकाए जाने की घटनाओं की जानकारी मिली है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

Please vote For Dr. Lenin Raghuvanshi/PVCHR

Please vote for Dr Lenin Raghuvanshi/PVCHR, my organisation, for the Human Dignity Award. http://www.human-dignity-forum.org/2012/05/lenin-raghuvanshi/

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उत्तर प्रदेश के बदायू जनपद के लालपुर पुलिस चौकी मे 17 वर्षीय किशोरी के साथ बलात्कार के सन्दर्भ मे !

सेवा मे,
           श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
           राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग,
           नई दिल्ली - भारत !

विषय -  उत्तर प्रदेश के  बदायू जनपद के लालपुर पुलिस चौकी मे 17 वर्षीय किशोरी के साथ बलात्कार के सन्दर्भ मे !

महोदय,
         हम आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के  बदायू जनपद के लालपुर पुलिस चौकी की ओर आकृष्ट कराना चन्हुंगा, जहा 17 वर्षीय किशोरी के साथ पुलिस के मुखबिर व वहा उपस्थित सिपाही का दोस्त ने उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला  और वही  सिपाही घटना के वक्त पुलिस चौकी के गेट पर खडा होकर पहरा देता रहा !

         पीडिता किशोरी रामपुर जिले के खजुरिया थाना अंतर्गत गांव कायमगंज  की निवासनी है, जो बडे सरकार की दरगाह पर जियारत करने आयी थी ! रात होने पर वह अपने वृद्ध रिश्तेदार के साथ एक तख्ते पर सो गयी, उसी दौरान सम्बन्धित पुलिस चौकी के गश्ती करते सिपाही गण पहुंच गये और चौकी ले आये ! पुलिस किशोरी और रिश्तेदार के छोडने के एवज मे 20 हज़ार रूपय्रे की मांग भी रखा था !

कृप्या  संलग्नक देखे :- http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8-%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%97-%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AA/137483

http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120529a_011190004&ileft=226&itop=77&zoomRatio=130&AN=20120529a_011190004

           विदित हो की जिन लोंगो पर जाय्ररीन की सुरक्षा का जिम्मा था, वे ही समाज मे असुरक्षा और अवयवस्था को जन्म देते है ! इस तरह की मामला हमेशा सुनने और देखने को मिलती है !

           अत: आप से अनुरोध है की मामले मे त्वरित हस्तक्षेप करते हुए सम्भावित दोषियो के खिलाफ न्यायोचित कानूनी कार्यवाही की जाए, एवम पीडिता व गवाहो को सुरक्षा तथा मुआवजा  प्रदान कराने का आदेश पारित करने के साथ मामले मे उच्चस्तरीय जांच कराने की कृपा करे ! 

भवदीय

डा0 लेनिन,
(महासचिव)

मानवाधिकार जननिगरानी समिति,
सा 4/ 2 ए. दौलतपुर, वाराणसी - 221002

मो. - +91-9935599333.
ई - मेल - lenin@pvchr.asia,

Please Visit :-
www.pvchr.asia
www.pvchr.net
www.testimonialtherapy.org
www.detentionwatch.blogspot.in

 संलग्नक :- 1)  http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8-%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%97-%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AA/137483
बदायूं : उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में शर्मसार कर देने वाली घटना में पुलिस चौकी में एक नाबालिग लड़की से कथित रूप से बलात्कार किया गया। इस मामले में तीन पुलिसकर्मियों को निलम्बित करके गिरफ्तार कर लिया गया है।
पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने आज यहां बताया कि रामपुर की रहने वाली 17 वर्षीय लड़की कल अपने नाना इकराम अली के साथ ‘बड़े सरकार’ की मजार पर चादर चढ़ाने आयी थी। रात ज्यादा हो जाने पर वह मजार परिसर में ही ठहर गए। उन्होंने बताया कि इसी बीच वहां शहर कोतवाली अंतर्गत लालपुल पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने इकराम अली और उसकी नातिन को कथित रूप से आपत्तिजनक स्थिति में देखा और दोनों को चौकी परिसर में ले गये। बाद में वे पुलिसकर्मी गश्त पर चले गए।
श्रीवास्तव ने बताया कि रात करीब तीन बजे सुमित नामक पुलिस रंगरूट अपने साथी गोपाल के साथ आया और रिहाई के लिये अली से कथित रूप से धन मांगा जिसमें असमर्थता जताने पर गोपाल उस लड़की को पुलिस चौकी के अंदर बने कमरे में ले गया और सुमित बाहर से दरवाजे की कुंडी लगाकर पहरे पर बैठ गया। उन्होंने बताया कि कमरे में लड़की के चीखने की आवाज सुनकर आसपास मौजूद स्थानीय लोग पहुंच गये और गोपाल तथा सुमित को पकड़ लिया।
श्रीवास्तव ने बताया कि इस मामले में सुमित, पुलिस चौकी में तैनात सिपाहियों औसाफ अली और माजिद तथा बलात्कार के आरोपी गोपाल को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने बताया सुमित, औसाफ अली और माजिद को निलम्बित कर दिया गया है। श्रीवास्तव ने बताया कि पीड़ित लड़की को चिकित्सीय परीक्षण के लिये भेजा गया है। (एजेंसी)

2) http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120529a_011190004&ileft=226&itop=77&zoomRatio=130&AN=20120529a_011190004


बदायूं की पुलिस चौकी में किशोरी से रेप
•अमर उजाला ब्यूरो
बदायूं। रामपुर के एक गांव से आई एक किशोरी के साथ रविवार की रात लालपुल की पुलिस चौकी में एक युवक ने बलात्कार किया। युवक सिपाही का दोस्त बताया गया है। युवती बड़े सरकार की दरगाह पर जियारत करने आई थी। हादसे की खबर लगते ही लोग जुट गए और रात ही में पुलिस चौकी घेर ली। हंगामा सोमवार सुबह तक चलता रहा। एसपी के आदेश पर दो सिपाहियों और एक रंगरूट को निलंबित कर गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने तीनों के साथ ही रेप के आरोपी युवक को भी गिरफ्तार कर चारों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया।
हादसे का शिकार किशोरी अपने रिश्ते के नाना (मां के खालू) के साथ रामपुर के एक गांव से यहां आई थी। रविवार रात उसके रिश्ते के नाना और किशोरी बड़े सरकार की दरगाह परिसर में एक ही तख्त पर सोए थे। वहां दूसरे जायरीनों को दोनों को साथ सोने पर कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने शोर मचा दिया। इसी दौरान पुलिस चौकी के गश्ती सिपाही माजिद हुसैन, औसाफ अली एवं सुमित के अलावा उसका दोस्त गोपाल निवासी मोहल्ला ब्राह्मपुर वहां पहुंच गए। सिपाही दोनों को चौकी ले आए। आरोप है कि पुलिस ने किशोरी और उसके रिश्तेदार को छोड़ने के लिए 20 हजार रुपये मांगे। रुपये नहीं देने पर दोनों को चौकी में बैठाए रखा गया।
सिपाही माजिद और औसाफ रात करीब 12 बजे फिर गश्त पर चले गए। इसी दौरान रंगरूट सुमित की मौजूदगी में उसके दोस्त गोपाल ने चौकी के ही कमरे में किशोरी के साथ बलात्कार किया। सोमवार को सुबह 11 बजे लालपुल पुलिस चौकी के सामने भीड़ ने रास्ता जाम कर दिया। एसपी रतन श्रीवास्तव के आदेश पर पीड़ित किशोरी की तहरीर पर सदर कोतवाली में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कराया गया।

पुलिस द्वारा कक्षा 10 मे पढने वाले मुस्लिम छात्र को 20 से ज्यादा बम ब्लास्ट के केस मे झूठा फसाया और लगभग 13 वर्ष तक जेल मे रहने के पश्चात कोर्ट ने सभी मामलो से बरी किया। छात्र का भविष्य बर्बाद होने तथा उसके जीवन जीने के अधिकार के हनन पर मुआवजा के सम्बन्ध मे।

                                                                                                                                                                
सेवा मे,                              दिनांक 31/5/2012
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

उत्तर प्रदेश शासन,

उत्तर प्रदेश सरकार,

लखनऊ।


विषय : पुलिस द्वारा कक्षा 10 मे पढने वाले मुस्लिम छात्र को 20 से ज्यादा बम ब्लास्ट के केस मे झूठा फसाया और लगभग 13 वर्ष तक जेल मे रहने के पश्चात कोर्ट ने सभी मामलो से बरी किया। छात्र का भविष्य बर्बाद होने तथा उसके जीवन जीने के अधिकार के हनन पर मुआवजा के सम्बन्ध मे।

महोदय,

      आपको यह अवगत कराना चाहता हू कि मोहम्मद आमिर खान पुत्र मुहम्मद हसीम जो कि कक्षा 10 का छात्र था। 20 फरवरी 1998 को उसे केवल शक के बिना पर पुलिस ने उठा लिया और उसे लगभग 20 से ज्यादा बम ब्लास्ट के मामले मे अवैध रूप से दोषी बनाया। 1996 के गाजियाबाद बम ब्लास्ट का भी मुख्य आरोपी बनाया गया। आमिर के पिता आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे और कोई वकील केस लडने को तैयार नही हुआ। जिसके सदमे से उसके पिता की मृत्यु हो गयी और उसकी मा की तबियत भी खराब हो गयी।

      साथ ही गाजियाबाद ब्लास्ट मे आमिर के साथ एक अन्य आरोपी शकील अहमद जो कि एक गरीब फेरीवाला था। उसे भी गिरफ्तार किया गया था। उसे दसना जेल गाजियाबाद मे जहर देकर मार दिया गया था और शकील का शव बैरक मे लटकता हुआ पया गया था। जिसमे सेशन कोर्ट गाजियाबाद के आदेश के बाद जेल अधीक्षक वी0 के0 सिंह और 4 अन्य पुलिस वालो पर एफ.आई.आर दर्ज की गयी थी।

आमिर 13 वर्ष से अधिक जेल मे रहा जहा उसे कोर्ट मे ट्रायल के लिये भी पेश नही किया गया। इसके बाद उच्च न्यायालय, इलाहाबाद मे उसके केस को देखते हुये सभी मामलो मे बरी कर दिया है. लेकिन आज भी आमिर और शकील को इंसाफ नही मिल पाया है।

अतः आपसे निवेदन है कि जिस प्रकार हैदराबाद के मक्का मस्जिद मे ब्लास्ट से बरी हुये व्यक्तियो को राज्य सरकार ने 1 लाख रुपये प्रति वर्ष (जितने समय जेल मे रहे) का मुआवजा दिया है. अतः आप से अनुरोध है कि आमिर व शकील को प्रति वर्ष जितने वर्ष जेल मे रहे उसे मुआवजा दिलाने की कृपा करे व दोषी पुलिस वालो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कराने का आदेश दे। ताकि भविष्य मे किसी निर्दोष को झूठे केस मे न फसाया जाय।


भवदीय

डा0 ळेनिन

महासचिव

मानवाधिकार जननिगरानी समिती   

Tuesday, May 15, 2012

विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

दिनांक : 15/5/2012

सेवा मे,

अध्यक्ष,

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग,

नई दिल्ली.   

विषय : विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

महोदय,

आपका ध्यान 10 मई 2012 के हिन्दुस्तान अखबार की इस खबर की ओर आकृष्ट कराना चाहता हू कि नखासा थाना इलाके के सलारपुर गाव मे विधानसभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो के हालात के बीच कार्यकर्ताओ के उत्पीडन से तंग आकर पांच परिवारो के सौ से ज्यादा सदस्यो ने गाव से पलायन कर दिया है.

विधानसभा चुनावो के नतीजे आते ही सलारपुर गाव मे सपा और बसपा समर्थको मे जंग छिड गयी थी. मतगणना के दिन ही शाम को सलारपुर मे सपा बसपा समर्थको के बीच संघर्ष हो गया था, जिसमे दोनो तरफ के 17 से ज्यादा लोग घायल हुये थे. इसके बाद से तो सलारपुर मे सपा और बसपा समर्थको के बीच लडाई झगडे रोजमर्रा की बात हो गयी.

पुलिस के रिकार्ड मे भी चुनाव से अब तक संघर्ष व मारपीट के आधा दर्जन से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज हो चुके है. इस हालात मे गाव के आम लोगो की कमर टूट गयी है. हालात व ज्यादती से तंग आकर हाज़ी सलीमुल्ला, हाज़ी अब्दुल्ला, हाज़ी बन्ने, सादीउल्ला व हाज़ी नन्हे के परिवारो के सौ से ज्यादा महिला पुरुष सदस्यो ने अपना सामान बान्धकर घरो मे ताले डाले और गाव से पलायान कर दिया.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच कराते हुये दोषी व्यक्तियो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का आदेश दे साथ ही पलायित परिवारो को पुनः पुनर्वासन हेतु मुआवजा दिलाने की कृपा करे.

सलग्नक : 10 मई 2012 के हिन्दुस्तान अखबार की कापी

भवदीय

डा0 लेनिन

महासचिव

मानवाधिकार जन निगरानी समिति           

  



 
 
 

विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

दिनांक : 15/5/2012

सेवा मे,

अध्यक्ष,

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,

नई दिल्ली.   

विषय : विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

महोदय,

आपका ध्यान 10 मई 2012 के हिन्दुस्तान अखबार की इस खबर की ओर आकृष्ट कराना चाहता हू कि नखासा थाना इलाके के सलारपुर गाव मे विधानसभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो के हालात के बीच कार्यकर्ताओ के उत्पीडन से तंग आकर पांच परिवारो के सौ से ज्यादा सदस्यो ने गाव से पलायन कर दिया है.

विधानसभा चुनावो के नतीजे आते ही सलारपुर गाव मे सपा और बसपा समर्थको मे जंग छिड गयी थी. मतगणना के दिन ही शाम को सलारपुर मे सपा बसपा समर्थको के बीच संघर्ष हो गया था, जिसमे दोनो तरफ के 17 से ज्यादा लोग घायल हुये थे. इसके बाद से तो सलारपुर मे सपा और बसपा समर्थको के बीच लडाई झगडे रोजमर्रा की बात हो गयी.

पुलिस के रिकार्ड मे भी चुनाव से अब तक संघर्ष व मारपीट के आधा दर्जन से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज हो चुके है. इस हालात मे गाव के आम लोगो की कमर टूट गयी है. हालात व ज्यादती से तंग आकर हाज़ी सलीमुल्ला, हाज़ी अब्दुल्ला, हाज़ी बन्ने, सादीउल्ला व हाज़ी नन्हे के परिवारो के सौ से ज्यादा महिला पुरुष सदस्यो ने अपना सामान बान्धकर घरो मे ताले डाले और गाव से पलायान कर दिया.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच कराते हुये दोषी व्यक्तियो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का आदेश दे साथ ही पलायित परिवारो को पुनः पुनर्वासन हेतु मुआवजा दिलाने की कृपा करे.

सलग्नक : 10 मई 2012 के हिन्दुस्तान अखबार की कापी

 

भवदीय

डा0 लेनिन

महासचिव

मानवाधिकार जन निगरानी समिति           

  

विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

दिनांक : 15/5/2012

सेवा मे,

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

उत्तर प्रदेश शासन,

लखनऊ.

विषय : विधान सभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो से आजिज आ कर नखासा थाना इलाके सलारपुर गाव के पांच परिवारो के 100 से ज्यादा लोगो द्वारा गाव छोडकर पलायन करने के सम्बन्ध मे.

महोदय,

आपका ध्यान 10 मई 2012 के हिन्दुस्तान अखबार की इस खबर की ओर आकृष्ट कराना चाहता हू कि नखासा थाना इलाके के सलारपुर गाव मे विधानसभा चुनाव के नतीजो के बाद से सपा और बसपा समर्थको मे चल रहे रोजमर्रा के झगडो के हालात के बीच कार्यकर्ताओ के उत्पीडन से तंग आकर पांच परिवारो के सौ से ज्यादा सदस्यो ने गाव से पलायन कर दिया है.

विधानसभा चुनावो के नतीजे आते ही सलारपुर गाव मे सपा और बसपा समर्थको मे जंग छिड गयी थी. मतगणना के दिन ही शाम को सलारपुर मे सपा बसपा समर्थको के बीच संघर्ष हो गया था, जिसमे दोनो तरफ के 17 से ज्यादा लोग घायल हुये थे. इसके बाद से तो सलारपुर मे सपा और बसपा समर्थको के बीच लडाई झगडे रोजमर्रा की बात हो गयी.

पुलिस के रिकार्ड मे भी चुनाव से अब तक संघर्ष व मारपीट के आधा दर्जन से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज हो चुके है. इस हालात मे गाव के आम लोगो की कमर टूट गयी है. हालात व ज्यादती से तंग आकर हाज़ी सलीमुल्ला, हाज़ी अब्दुल्ला, हाज़ी बन्ने, सादीउल्ला व हाज़ी नन्हे के परिवारो के सौ से ज्यादा महिला पुरुष सदस्यो ने अपना सामान बान्धकर घरो मे ताले डाले और गाव से पलायान कर दिया.

इस तरह की घटना से पार्टी की छवि धूमिल हो रही है. लोगो का विश्वास पार्टी पर से हट रहा है.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच कराते हुये दोषी व्यक्तियो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का आदेश दे साथ ही पलायित परिवारो को पुनः पुनर्वासन हेतु मुआवजा दिलाने की कृपा करे.

 

भवदीय

डा0 लेनिन

महासचिव

मानवाधिकार जन निगरानी समिति           

  



 
 
 

थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर

सेवा मे,                                                दिनांक : 15/5/2012

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

उत्तर प्रदेश शासन,

लखनऊ.

विषय :थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर   

शानू को अवैध ढंग से उठाया गया और प्रताडित करके अपहरण के झूठे मुकद्दमे मे जेल भेजने के सम्बन्ध मे.

 

महोदय,

आप का ध्यान भीमनगर जिले के थाना सम्भल के इस घटना की ओर कराना चाहता हू कि पुलिस द्वारा बिना जांच किये अपहरण के मामले मे शानू को गिरफ्तार करके प्रताडित किया गया. घटना दिनांक 19/11/2011 को घटित हुयी और इसके साथ ही सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस घटना की एफ.आई.आर. दिनांक 14/12/2011 को दर्ज की गयी और शानू को दिनांक 9/11/2011 को अवैध तरीके से पुलिस ने 12 बजे दोपहर मे उसके मामा के कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया और उसे बुरी तरह से मारा पीटा साथ ही उसे अवैध तरीके से थाने मे भी रखा.

घटना इस प्रकार है कि दिनांक 19/11/2011 को रशीद पुत्र मसात निवासी- आदमपुर रोड बदायू दरवाजा, थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर का पोता फैजल 6 वर्ष पडोस के यहा शादी मे खाना खाने दिन मे 3.30 बजे गया था. वही से अचानक गायब हो गया. परिजनो के काफी ढूढने के बाद जब वो नही मिला तो बच्चे के गुम होने की सूचना कोतवाली पुलिस को दी गयी. इसी बीच दिनांक 21/11/2011 को वादी रशीद के पडोस मे रहने वाले रफत के मोबाईल पर एक अज्ञात व्यक्ति के मोबाईल नम्बर 8859172062 से पांच लाख की फिरौती का फोन आया. पडोसी रफत ने इस सम्बन्ध मे वादी राशीद को सूचना दी. राशीद के परिवार वालो ने रकम देने मे असमर्थता जताई. तभी कोतवाली सम्भल से राशीद को सूचना दी गयी कि तुम्हारा पोता फैजल गजरौला पुलिस के पास है. सम्पर्क करके ले लो. जब राशीद गजरौला पहुंचा तो वहा से बच्चे को ईलाज हेतु मेरठ भेज दिया गया था. राशीद मेरठ पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पोते का पैर घुटने के नीचे से कट चुका था. वहा से लौट कर राशीद ने सम्भल कोतवाली को यह सूचना दी कि शानू पुत्र सईद, निवासी मोहल्ला नाला, थाना सम्भल, जिला भीम नगर को फैजल के अपहरण मे आरोपित कर दिया. थाना सम्भल पुलिस बगैर किसी जांच पडताल के दिनांक 9/12/2011 को 12 बजे कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया बिना कुछ पूछ ताछ के मारना – पीटना शुरू कर दिया. बन्दूक के वट से सर पर मारा जिससे गम्भीर चोटे आयी. शानू के पूरे कपडे खून से लथ-पथ हो गये. पुलिस शानू को कोतवाली ले गयी और रात मे एक क्रीम कलर की चार पहिया वाहन स्कार्पियो जीप मे डालकर रास्ते मे बुरी तरह मारते हुये मेरठ के पास ले जाकर चौधरी सराय पुलिस चौकी के दरोगा ने रास्ते मे गाडी रोककर पीडीत शानू को गाडी से उतार कर उसके उपर रिवाल्वर तान लिया और उसके साथियो का पता पूछने लगे. चौकी इंचार्ज ने कहा कि अगर अपने साथियो का नाम नही बताया तो तुझे इंकाउंटर कर दूंगा. पीडित शानू को कुछ समझ मे नही आ रहा था वह लगातार रोये जा रहा था. फिर पुलिस द्वारा उसे मेरठ अस्पताल ले जाया गया जहा फैजल का ईलाज चल रहा था.

बालक फैजल से पुलिस द्वारा पूछा गया कि तुम इसे पहचानते हो तो उसने उसे पहचानते हुये यह कहा कि यह शानू है और मेरे पापा के साथ काम करता है. पुलिस द्वारा अपहरण मे शामिल होने के सम्बन्ध मे फैजल से कुछ भी नही पूछा और शानू को फिर से बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया और उसका चालान कर दिया गया.

कुछ महीनो बाद पुलिस ने ही खुलासा किया कि असली दोषी अपहरणकर्ता पकड लिये गये है और शानू बेकसूर है.

जबकी शानू को प्रताडित करने के साथ साथ उसे जेल मे भी रखा गय. यह बात इस तरफ इशरा करती है कि पुलिस ने जांच निष्पक्ष तरीके से नही की और केस सुलझाने के लिये आनन फानन मे शानू को ही दोषी साबित करके उसे जेल भेज दिया.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि कृपया आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच निष्पक्ष कराते हुये दोषी पुलिस कर्मियो के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कराया जाय और शानू के समाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुचाने वाले पुलिस कर्मियो को सजा दिलाया जाय और शानू को मुआवजा दिलाया जाय.

 

संलग्नक :

1.       एफ.आई.आर की कापी

2.       अमर उजाला मे छपी खबर के कापी. 

 

 

भवदीय

डा0 लेनिन

                        महासचिव 

थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर शानू को अवैध ढंग से उठाया गया और प्रताडित करके अपहरण के झूठे मुकद्दमे मे जेल भेजने के सम्बन्ध मे.

सेवा मे,                                                दिनांक : 15/5/2012

अध्यक्ष,

राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग,

नई दिल्ली.

विषय :थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर शानू को अवैध ढंग से उठाया गया और प्रताडित करके अपहरण के झूठे मुकद्दमे मे जेल भेजने के सम्बन्ध मे.

 

महोदय,

आप का ध्यान भीमनगर जिले के थाना सम्भल के इस घटना की ओर कराना चाहता हू कि पुलिस द्वारा बिना जांच किये अपहरण के मामले मे शानू को गिरफ्तार करके प्रताडित किया गया. घटना दिनांक 19/11/2011 को घटित हुयी और इसके साथ ही सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस घटना की एफ.आई.आर. दिनांक 14/12/2011 को दर्ज की गयी और शानू को दिनांक 9/11/2011 को अवैध तरीके से पुलिस ने 12 बजे दोपहर मे उसके मामा के कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया और उसे बुरी तरह से मारा पीटा साथ ही उसे अवैध तरीके से थाने मे भी रखा.

घटना इस प्रकार है कि दिनांक 19/11/2011 को रशीद पुत्र मसात निवासी- आदमपुर रोड बदायू दरवाजा, थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर का पोता फैजल 6 वर्ष पडोस के यहा शादी मे खाना खाने दिन मे 3.30 बजे गया था. वही से अचानक गायब हो गया. परिजनो के काफी ढूढने के बाद जब वो नही मिला तो बच्चे के गुम होने की सूचना कोतवाली पुलिस को दी गयी. इसी बीच दिनांक 21/11/2011 को वादी रशीद के पडोस मे रहने वाले रफत के मोबाईल पर एक अज्ञात व्यक्ति के मोबाईल नम्बर 8859172062 से पांच लाख की फिरौती का फोन आया. पडोसी रफत ने इस सम्बन्ध मे वादी राशीद को सूचना दी. राशीद के परिवार वालो ने रकम देने मे असमर्थता जताई. तभी कोतवाली सम्भल से राशीद को सूचना दी गयी कि तुम्हारा पोता फैजल गजरौला पुलिस के पास है. सम्पर्क करके ले लो. जब राशीद गजरौला पहुंचा तो वहा से बच्चे को ईलाज हेतु मेरठ भेज दिया गया था. राशीद मेरठ पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पोते का पैर घुटने के नीचे से कट चुका था. वहा से लौट कर राशीद ने सम्भल कोतवाली को यह सूचना दी कि शानू पुत्र सईद, निवासी मोहल्ला नाला, थाना सम्भल, जिला भीम नगर को फैजल के अपहरण मे आरोपित कर दिया. थाना सम्भल पुलिस बगैर किसी जांच पडताल के दिनांक 9/12/2011 को 12 बजे कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया बिना कुछ पूछ ताछ के मारना – पीटना शुरू कर दिया. बन्दूक के वट से सर पर मारा जिससे गम्भीर चोटे आयी. शानू के पूरे कपडे खून से लथ-पथ हो गये. पुलिस शानू को कोतवाली ले गयी और रात मे एक क्रीम कलर की चार पहिया वाहन स्कार्पियो जीप मे डालकर रास्ते मे बुरी तरह मारते हुये मेरठ के पास ले जाकर चौधरी सराय पुलिस चौकी के दरोगा ने रास्ते मे गाडी रोककर पीडीत शानू को गाडी से उतार कर उसके उपर रिवाल्वर तान लिया और उसके साथियो का पता पूछने लगे. चौकी इंचार्ज ने कहा कि अगर अपने साथियो का नाम नही बताया तो तुझे इंकाउंटर कर दूंगा. पीडित शानू को कुछ समझ मे नही आ रहा था वह लगातार रोये जा रहा था. फिर पुलिस द्वारा उसे मेरठ अस्पताल ले जाया गया जहा फैजल का ईलाज चल रहा था.

बालक फैजल से पुलिस द्वारा पूछा गया कि तुम इसे पहचानते हो तो उसने उसे पहचानते हुये यह कहा कि यह शानू है और मेरे पापा के साथ काम करता है. पुलिस द्वारा अपहरण मे शामिल होने के सम्बन्ध मे फैजल से कुछ भी नही पूछा और शानू को फिर से बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया और उसका चालान कर दिया गया.

कुछ महीनो बाद पुलिस ने ही खुलासा किया कि असली दोषी अपहरणकर्ता पकड लिये गये है और शानू बेकसूर है.

जबकी शानू को प्रताडित करने के साथ साथ उसे जेल मे भी रखा गय. यह बात इस तरफ इशरा करती है कि पुलिस ने जांच निष्पक्ष तरीके से नही की और केस सुलझाने के लिये आनन फानन मे शानू को ही दोषी साबित करके उसे जेल भेज दिया.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि कृपया आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच निष्पक्ष कराते हुये दोषी पुलिस कर्मियो के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कराया जाय और शानू के समाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुचाने वाले पुलिस कर्मियो को सजा दिलाया जाय और शानू को मुआवजा दिलाया जाय.

 

संलग्नक :

1.       एफ.आई.आर की कापी

2.       अमर उजाला मे छपी खबर के कापी. 

 

 

भवदीय

डा0 लेनिन

                         महासचिव

थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर शानू को अवैध ढंग से उठाया गया और प्रताडित करके अपहरण के झूठे मुकद्दमे मे जेल भेजने के सम्बन्ध मे.

सेवा मे,                                                       दिनांक : 15/5/2012

अध्यक्ष,

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,

नई दिल्ली.

विषय :थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर की पुलिस द्वारा बिना जांच किये शक के आधार पर शानू को अवैध ढंग से उठाया गया और प्रताडित करके अपहरण के झूठे मुकद्दमे मे जेल भेजने के सम्बन्ध मे.

महोदय,

आप का ध्यान भीमनगर जिले के थाना सम्भल के इस घटना की ओर कराना चाहता हू कि पुलिस द्वारा बिना जांच किये अपहरण के मामले मे शानू को गिरफ्तार करके प्रताडित किया गया. घटना दिनांक 19/11/2011 को घटित हुयी और इसके साथ ही सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस घटना की एफ.आई.आर. दिनांक 14/12/2011 को दर्ज की गयी और शानू को दिनांक 9/11/2011 को अवैध तरीके से पुलिस ने 12 बजे दोपहर मे उसके मामा के कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया और उसे बुरी तरह से मारा पीटा साथ ही उसे अवैध तरीके से थाने मे भी रखा.

घटना इस प्रकार है कि दिनांक 19/11/2011 को रशीद पुत्र मसात निवासी- आदमपुर रोड बदायू दरवाजा, थाना – सम्भल, जिला – भीम नगर का पोता फैजल 6 वर्ष पडोस के यहा शादी मे खाना खाने दिन मे 3.30 बजे गया था. वही से अचानक गायब हो गया. परिजनो के काफी ढूढने के बाद जब वो नही मिला तो बच्चे के गुम होने की सूचना कोतवाली पुलिस को दी गयी. इसी बीच दिनांक 21/11/2011 को वादी रशीद के पडोस मे रहने वाले रफत के मोबाईल पर एक अज्ञात व्यक्ति के मोबाईल नम्बर 8859172062 से पांच लाख की फिरौती का फोन आया. पडोसी रफत ने इस सम्बन्ध मे वादी राशीद को सूचना दी. राशीद के परिवार वालो ने रकम देने मे असमर्थता जताई. तभी कोतवाली सम्भल से राशीद को सूचना दी गयी कि तुम्हारा पोता फैजल गजरौला पुलिस के पास है. सम्पर्क करके ले लो. जब राशीद गजरौला पहुंचा तो वहा से बच्चे को ईलाज हेतु मेरठ भेज दिया गया था. राशीद मेरठ पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पोते का पैर घुटने के नीचे से कट चुका था. वहा से लौट कर राशीद ने सम्भल कोतवाली को यह सूचना दी कि शानू पुत्र सईद, निवासी मोहल्ला नाला, थाना सम्भल, जिला भीम नगर को फैजल के अपहरण मे आरोपित कर दिया. थाना सम्भल पुलिस बगैर किसी जांच पडताल के दिनांक 9/12/2011 को 12 बजे कोल्ड स्टोरेज से उठा लिया बिना कुछ पूछ ताछ के मारना – पीटना शुरू कर दिया. बन्दूक के वट से सर पर मारा जिससे गम्भीर चोटे आयी. शानू के पूरे कपडे खून से लथ-पथ हो गये. पुलिस शानू को कोतवाली ले गयी और रात मे एक क्रीम कलर की चार पहिया वाहन स्कार्पियो जीप मे डालकर रास्ते मे बुरी तरह मारते हुये मेरठ के पास ले जाकर चौधरी सराय पुलिस चौकी के दरोगा ने रास्ते मे गाडी रोककर पीडीत शानू को गाडी से उतार कर उसके उपर रिवाल्वर तान लिया और उसके साथियो का पता पूछने लगे. चौकी इंचार्ज ने कहा कि अगर अपने साथियो का नाम नही बताया तो तुझे इंकाउंटर कर दूंगा. पीडित शानू को कुछ समझ मे नही आ रहा था वह लगातार रोये जा रहा था. फिर पुलिस द्वारा उसे मेरठ अस्पताल ले जाया गया जहा फैजल का ईलाज चल रहा था.

बालक फैजल से पुलिस द्वारा पूछा गया कि तुम इसे पहचानते हो तो उसने उसे पहचानते हुये यह कहा कि यह शानू है और मेरे पापा के साथ काम करता है. पुलिस द्वारा अपहरण मे शामिल होने के सम्बन्ध मे फैजल से कुछ भी नही पूछा और शानू को फिर से बुरी तरह से मारना शुरू कर दिया और उसका चालान कर दिया गया.

कुछ महीनो बाद पुलिस ने ही खुलासा किया कि असली दोषी अपहरणकर्ता पकड लिये गये है और शानू बेकसूर है.

जबकी शानू को प्रताडित करने के साथ साथ उसे जेल मे भी रखा गय. यह बात इस तरफ इशरा करती है कि पुलिस ने जांच निष्पक्ष तरीके से नही की और केस सुलझाने के लिये आनन फानन मे शानू को ही दोषी साबित करके उसे जेल भेज दिया.

अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि कृपया आप इस मामले को संज्ञान मे लेते हुये इस मामले की जांच निष्पक्ष कराते हुये दोषी पुलिस कर्मियो के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कराया जाय और शानू के समाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुचाने वाले पुलिस कर्मियो को सजा दिलाया जाय और शानू को मुआवजा दिलाया जाय.

 

संलग्नक :

1.       एफ.आई.आर की कापी

2.       अमर उजाला मे छपी खबर के कापी.  

 

 

भवदीय

डा0 लेनिन

                        महासचिव

Saturday, May 5, 2012

The Age of the Elephant: The Politics of Caste in Uttar Pradesh



http://tyglobalist.org/front-page/features/the-age-of-the-elephant-the-politics-of-caste-in-uttar-pradesh/ 

The Yale Globalist 

The Age of the Elephant: The Politics of Caste in Uttar Pradesh

— May 3, 2012 at 12:44 am | 0 comments

 

by Marissa Dearing:

Amidst the swarming crowds of Uttar Pradesh tower are hundreds upon hundreds of colossal stone and bronze elephants. Although the sheer scale and spread of this super-sized herd might suggest elephants here enjoy ceremonial reverence, the statues are neither sacred nor traditional. They are political mascots for the Bahujan Samaj Party (BSP), a lower-caste party whose winning 2007 campaign slogans included "If you don't vote for elephant, you will be history!" and "Upper castes must be humiliated!"

olitical parties in India engage in constant information war to gain votes. (Courtesy Lenin Raghuvanshi)

The elephants are not alone. BSP's leader, Mayawati, who is so famous she goes by a single name, is a Dalit, a member of the "Untouchable" caste. Historically the pariah caste of Indian society, Dalits are prohibited from marrying, living, eating, walking, touching, and even making eye contact with those of higher castes and physically barred from temples, public wells, upper-caste neighborhoods, and other public areas. They have faced discrimination in nearly every sphere of daily life. Before losing power in last February's state elections, Mayawati strove to overcome this corrosive legacy, using millions of dollars' worth of state funds to build statues of Dalit heroes throughout Uttar Pradesh (UP), many in her own image. India's largest and most populous state is as notorious for its extreme poverty as it is for its caste violence, and Mayawati's flamboyant tenure generated immense controversy. From channeling state funds to extravagant projects promoting lower-caste interests to sporting outsized necklaces made of rupee notes worth between $400,000 and $2,000,000, Mayawati seemed to continually contradict the political interests she championed.

Last February, Mayawait's elephants disappeared under endless sheets of pink and orange plastic by order of UP's Election Commission, which feared the imposing symbols might inappropriately influence voters' decisions in the upcoming state elections. The controversy surrounding caste and corruption, far from unique to Mayawati or UP, has been raging across India for the past decade. The multi-colored elephants of Uttar Pradesh seem to be just the latest red flags in the future of the world's largest democracy.

Not all are convinced, however, that such zeal for a caste-specific party is so ominous. "It is not grotesque. It is not abnormal. It is not absurd to see that Indians are still voting on caste lines," said Professor Priyankar Upadhyaya, the UNESCO Chair for Peace and Intercultural Understanding, and long-time resident of UP. Upadhyaya believes recent caste parties like the BSP in Uttar Pradesh have done much to give lower-caste groups a voice and dignity long denied them. Despite the constitutional prohibition of lower-caste discrimination decades ago, as recently as 1999, killing squads in the neighboring state of Bihar took hundreds of Dalit lives. Smaller-scale caste violence has persisted even today, often involving police, judicial, and official complicity decried by rural and urban Indians alike. Pervasive discrimination continues, denying Dalits access to adequate education, jobs, and social services, not to mention political representation.

But in recent years, caste parties have actually been a way for many of India's underrepresented and severely underprivileged to force the state to listen to their concerns and improve their daily lives. Upadhyaya, for one, believes that Mayawati transformed Dalit identity in the UP.

"Dalits who, ten years back, would not easily display their identity as Dalit—now they come forward and say that they are Dalits," said Upadhyaya. Such a transformation is in part attributable to the very programs for which Mayawati is so maligned in the Indian press: as Upadhyaya affirmed, prominent Dalit symbols in public places have helped establish equality as a new societal norm. Mayawati also worked to solidify her constituency's protection through laws that make it much more difficult to exploit rural Dalits for their land or publicly abuse lower-castes without facing a weighty punishment.

In the last round of UP elections, however, the BSP was soundly defeated, in part due to the uproar surrounding Mayawati's flashy opportunism, according to Lenin Raghuvanshi, a Dalit rights activist, participant in UP's 2012 Election Watch, and cofounder of the People's Vigilance Committee on Human Rights.

Though BSP's loss could signal the decline of caste-driven politics, many remain unconvinced. But caste will likely continue to play a major role in determining how Indians vote. Caste is deeply ingrained in Indian society, and has been a basis of political identity. Many voters assume elected members of their own caste, a sort of "extended family" as Upadhyaya termed it, are most likely to help them get into schools, find adequate jobs, and receive the social services they need. "People [just] go back to their caste shell," said Upadhyaya.

Many, like Raghuvanshi, hold caste responsible for India's rampant corruption; voters often support candidates of their own caste despite blatant corruption or incompetence because they believe that once in office, co-caste representatives will reward them with benefits like jobs or college admission. The resulting impunity pervades Indian politics: in UP, almost half of all members of the legislative assembly have criminal cases declared against them, and the state's newly elected chief minister has strong familial ties to political power in the region.

Despite a continuing corrupt political system, UP's elections suggest times are changing in India. Reports on election returns indicate some Dalits chose to vote against their lower-caste champion Mayawati to protest her corruption and extravagance, and there is reason to believe such shifts away from purely caste-based voting may run deeper than this election in this state this year.

"Caste took a little bit of a back seat," said Gaurav Saigal, a principal correspondent for the Hindustan Times. Saigal believes this switch is due in part to the strengthening of Indian civil society.

In a country where everything from a driver's license to a restaurant permit to avoiding wrongful arrest requires a bribe, Indians' greater capacity to organize, inform, and participate through social media like Facebook, Twitter, and personal blogs has resulted in widespread insistence on government transparency and accountability.

"Civil society…made the issue of corruption a grassroots issue," Saigal said. "85 percent of the electorate could understand that [corruption] is a word that affects them in their daily lives."

Indians are demanding more than the transactional status quo from their governments, and Upadhyaya believes that eventually, real evidence of good governance may eventually draw people away from electoral caste lines (as has happened in the state of Bihar under Nitish Kumar). Pressure for fundamental change in India is mounting.

Activist Raghuvanshi sees that change taking a radical form in UP: "a new Dalit revolution." In villages and cities across UP, Indians are now rising up against the caste system and joining a new Dalit movement, a revolution not restricted to Untouchables, but open to all opposed to the caste system.

"Without eliminating [caste] in this country, how are you going to eliminate corruption in the society?" Raghuvanshi asked. "It is the most corrupt system in the world."

Increasingly, activists from higher castes, like Raghuvanshi, have been going into villages to wash Dalits' feet, eat with them, and raise awareness of political and social issues in hopes of erasing caste divisions

and decades of marginalization (largely uncovered by the Indian press, he added). Even over his lifetime, Raghuvanshi has already seen a great deal of change.

"When I was a kid… in an upper caste family, I never [saw] Dalits coming to our marriages [or] to eat with us, but now [it's] happening all the time," he said.

At the same time, the lower-caste poor are working to transform and empower themselves through modernization. According to Raghuvanshi, the younger generation is now increasingly relying on the Internet to stay informed and build communication networks. Dalits in rural villages and urban slums have used radio, television, and SMS text messaging to learn about and discuss events beyond the immediate locale; some have used SMS networks to broadcast news of local human rights abuses to activists like Raghuvanshi. "They've changed themselves very dramatically," he said.

For Raghuvanshi, this new, inclusive, and unified Dalit revolution represents the best hope for the future of Indian democracy, calling it "the force [that's] going to change the feudal system of India and [help India] join the real global democracy."

After decades of politics rooted in caste divisions, the foundations of Indian democracy are shifting. In the aftermath of the recent state elections, leaders of several major parties in UP have acknowledged that the caste system has been the root of rampant discrimination and corruption in India, and increasingly, the political consensus is that its divisions must be ended. Perhaps UP's notorious elephants are not stony omens about the rising tyranny of caste but milestones marking how far democracy in India has come.

Marissa Dearing '14 is a Political Science and Humanities double major in Berkeley College. Contact her at marissa.dearing@yale.edu.