PVCHR initiative supported by EU

Reducing police torture against Muslim at Grass root level by engaging and strengthening Human Rights institutions in India

Monday, July 1, 2013

National commission for Protection of Child Right(NCPCR) issue notice to DM Varanasi and ask the report about hunger death at Bazardiha, Varanasi




To: "shantha.sinha" <shantha.sinha@nic.in>, Yogesh Dube <dryogeshdube@gmail.com>,
        "yogesh.dube" <yogesh.dube@nic.in>
सेवा में,                                                                                       20 May, 2013 
अध्यक्ष महोदया,
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग,
नई दिल्ली |

       वाराणसी जिले के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बजरडीहा में भूख और कुपोषण से
बुनकर परिवार के दो बच्चों की मौत हो हुयी  मृत बच्चों के दो और बहन शाहीना व
परवीन भी कुपोषण से ग्रस्त है जिनका ईलाज चल रहा है | बजरडीहा क्षेत्र में ऐसी
स्थिति एक भयानक रूप ले रहा है , जिसका कारण संसाधनों तक इन परिवारों की पहुच
न होना दूसरा इन क्षेत्रों में गन्दगी , दूषित पेयजल लोगो के लिए खतरा बना हुआ
है
       अत: आप से निवेदन है की उक्त मामले पर अविलम्ब कार्यवाही करने कि कृपा
करे |

     नोट- वाराणसी के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बजरडीहा पर एक रिपोर्ट सलग्नक
है |




श्रुति नागवंशी
मैनेजिंग ट्रस्टी
मानवाधिकार जननिगरानी समिति
सा 4/2 ए दौलतपुर, वाराणसी, उत्तर-प्रदेश |
9935599330
Email:  minority.pvchr@gmail.com
 Please visit:
www.pvchr.net
 www.pvchr.org


Report 

बनारसी साड़ी के सनत के हुनरमंद मौत के मोहाने पर, बेबस अपनी मौत का कर रहे इंतजार

भूख और कुपोषण के शिकार बुनकर परिवार के दो बच्चों की एक ही दिन में तड़पते हुए मौत

                                                                                                      उत्तर प्रदेश वाराणसी के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बजरडीहा में एक ही परिवार के दो बच्चे - 9 मई की आधी रात लगभग दो बजे साढ़े तीन वर्षीय बेटा मोहम्मद मुर्तजा, अगले दिन 10 मई को लगभग दस बजे चौदह वर्षीया बेटी समीना परवीन की कुपोषण और भूख से संघर्ष करते हुए मौत हो गयी | इससे पहले बच्चों के बुनकर पिता अब्दुल खालिक की मौत करीब दस महीने पहले आर्थिक तंगी से पैदा हुई भुखमरी के कारण हो गयी थी | अब्दुल खालिक की मौत के दो वर्ष पूर्व उनकी सात वर्षीय बेटी शबा परवीन की मौत भी फाकाकंशी और  आवश्यक पोषण युक्त भोजन न मिल पाने के कारण हो गयी |  
बजरडीहा वाराणसी शहर का मुस्लिम बाहुल्य इलाका जिसकी आबादी एक लाख से ऊपर है | यह वाराणसी शहर में विश्व विख्यात काशी हिन्दू विश्वविधालय (BHU) के करीब बसा है| बजरडीहा के चारो तरफ के रिहाइसी इलाके अपेक्षाकृत काफी समृद्ध और संसाधन युक्त है| वहीं इस क्षेत्र के बुनियादी साधन सडकें व गलियों की साफ - सफाई की व्यवस्था, खराब उफनता सीवर, कूड़े - कचरे का ढेर, पीने के पानी जैसी बुनियादी सेवाओं के अभाव के साथ ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य की स्थिति अत्यन्त गम्भीर है| इस क्षेत्र में बच्चों एवं महिलाओं को मिलने वाली स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में गुणवत्ता का घोर आभाव है| इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर एक नगरीय स्वास्थ्य केन्द्र  है जो सुबह 8 बजे से 12 बजे बीच ही खुलता है, ऐसे में इस क्षेत्र के बच्चों एवं  महिलाओं  की स्वास्थ्य  स्थिति खराब होना स्वभाविक है| बच्चों एवं  महिलाओं स्वास्थ्य देखभाल  के लिए इस क्षेत्र में सत्रह (17) आंगनबाडी केन्द्र संचालित है,  लेकिन स्थानीय निवासियों को आंगनबाड़ी केन्द्रों द्वारा दी जा रही सेवाओं के सन्दर्भ में कोई जानकारी ही नहीं है | आंगनबाडी केन्द्र कहाँ संचालित है ?  इन केन्द्रों से  कौन  सी सेवाए मिलती है ? इन सेवाओ के सन्दर्भ में समुदाय को कोई  जानकारी न होने के
कारण आंगनबाड़ी कार्यकर्ती अपनी सुविधानुसार केंद्र संचालित करती है| अधिकत्तर आंगनबाड़ी केंद्र सहायिकाओं के भरोसे खुलता है आंगनबाड़ी कार्यकर्ती इन केन्द्रों पर बहुत कम जाती हैं | बच्चो की शिक्षा के लिए एक मात्र प्राथमिक विधालय है जहाँ उर्दू शिक्षक नही होने से लोग अपने बच्चों को वहां भेजना पसंद नही करते, क्षेत्र में एक मात्र सरकारी सहायता प्राप्त हंसिया गोसिया मदरसा संचालित है शेष  प्राइवेट मदरसों में जो परिवार फ़ीस दे सकता है उनके बच्चे पड़ने जाते है सैकड़ो बच्चे साड़ी बिनाई के काम में दिन के आठ से दस घंटे लगाते है| आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुके कई परिवारो को अपनी आवश्यक आवश्यकताओ के लिए कर्ज का सहारा लेना पड़ता है| कर्ज चुकाने के लिए बच्चों को अपने बचपन में कठोर श्रम करना पड़ता है |            
इसी बजरडीहा क्षेत्र के जक्खा ऊचवा मुहल्ले में अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रह रहे अब्दुल खालिक विख्यात बनारसी सनत (कला) बनारसी साड़ी के बुनकर थे | अब्दुल खालिक के परिवार में पत्नी नाजरा खातून (उम्र लगभग 35 वर्ष), बड़ी बेटी नासिरा परवीन (उम्र लगभग 18 वर्ष), नाजिया परवीन (उम्र लगभग 16 वर्ष), समीना परवीन (उम्र लगभग 14 वर्ष), शाहीना परवीन (उम्र लगभग 12 वर्ष ), शबा परवीन (उम्र लगभग 7 वर्ष), एवं एक बेटा मोहम्मद मुर्तजा (उम्र लगभग 3.5 वर्ष) कुल छ: बच्चे रहे | लेकिन हाल के दो वर्षो में सबसे पहले सात वर्षीया बेटी शबा परवीन की मौत हो गयी फिर दस महीने पहले अब्दुल खालिक की मौत हुई और अब 9 मई की आधी लगभग रात दो बजे मोहम्मद मुर्तजा और अगले दिन सुबह लगभग दस बजे चौदह वर्षीया शाहीना परवीन की मौत हो गयी | 
अब्दुल साडी बुनकरी से बहुत मेहनत के बाद दिन में 40 से 50 रूपये ही कमा पाते थे | पत्नी नाजरा खातून बड़ी बेटी नासिरा परवीन भी आरी और साड़ी कटिंग का काम करके थोडा बहुत कमा लेती थीं, मंदी के दौर में जैसे तैसे ग्रहस्थी चल रही थी, लेकिन घर के कमाऊ सदस्य (अब्दुल खालिक) की मौत के बाद  अब्दुल खालिक का परिवार  बुरी तरह टूट चूका था | इस परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर के राशन कार्ड के आलावा कोई भी सरकारी योजना का लाभ नही मिला था | इस परिवार के पास ना ही बुनकर पहचान पत्र था, ना ही बुनकरों के स्वास्थ्य के लिए संचालित लोम्बार्ड स्कीम के तहत स्वास्थ्य बीमा कार्ड | परिवार के बच्चे, किशोरी भी समेकित बाल विकास परियोजना (ICDS) से नही जोड़े गये थे ,यहाँ तक की घर के कमाऊ सदस्य की असामयिक मौत के बाद उनकी  विधवा नाजरा खातून को न ही राष्ट्रीय पारिवारिक सहायता का लाभ मिला ना ही आज तक विधवा पेंशन का लाभ ही मिल पाया |
दो वर्षो के अंदर पति और तीन बच्चों की मौत से नाजरा खातून बुरी तरह टूट चुकी है वे किसी से कुछ बात करने की स्थिति में नही थी, उनकी बड़ी बेटी नासिरा परवीन जिसकी शादी हो चुकी है, ने हमें बताया कि हमारा परिवार बहुत गरीब है, मेरे अब्बू बहुत मेहनत करके भी दिन में 40 से 50 रूपये कभी-कभी 100 कमा पाते थे | जब तक मेरी शादी नही हुई थी मैं और मेरी माँ साड़ी में कटिंग और आरी का काम करके दिन में 10 से 20 रूपये कमा लेते थे, लेकिन मेरी शादी और दस महीने पहले अब्बू की मौत के बाद घर के हालात और भी खराब हो गये | इतनी कम कमाई में हमनें कभी भरपेट खाना नही खाया | कभी दिन में खाया तो रात में नही मिला और अगर रात में खाया तो दिन में नही मिला | हमें याद नही है कि कब हमारे परिवार ने ठीक से खाना खाया है| अब्बू, मेरी दो बहनों और इकलौते भाई की मौत भी आधे पेट खाने से और कभी – कभी भूखे ही सो जाने से हुई है| जब खाना नही खा पायेंगे तो कमजोरी बीमारी तो आयेगी ही और जब पेट में खाना नही होगा तो दवा कैसे काम करेगी| मेरे अब्बू अक्सर बीमार रहने लगे थे तभी से कमाई भी ठीक से नही हो पाती थी| जब वे थे तो गरीबी रेखा वाले राशन कार्ड (अन्त्योदय कार्ड) और इलाज वाले कार्ड के लिए (स्वास्थ्य बीमा कार्ड) कई लोगों से कहा लेकिन किसी ने कोई मदद नही की कई जगह गये लेकिन उनका कार्ड नही बन सका, उन्हें सरकार से कोई सुविधा नही मिली  | हमारे पास अपना घर भी नहीं है हम किराये के मकान में रहते है जिसका किराया (600) छ: सौ रूपये देना पड़ता है जो पिछले छ: महीनों से हम नही दे पाये है | इधर छोटे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी की सुविधा भी नही है न ही दवा इलाज की कोई व्यवस्था है | मेरी माँ आस पास के मुहल्ले के लोगों का उनके पुराने कपड़ो से बिछावन (बिस्तर) बनाने का काम करती है, बिस्तर तैयार होने पर 50 से 100 रूपये तक मिल जाते है यह बिछावन चार से पांच दिन में तैयार हो पाता है | हम आरी का काम जानते है लेकिन अब्बू की मौत के बाद बाहर से काम कौन काम लाता थोडा बहुत जो काम मिला मेरी माँ बहने करके किसी तरह गुजारा कर रही थीं धीरे धीरे इसका असर उनकी सेहत पर पड़ने लगा उनका शरीर अंदर से खोंखला होता गया, वे कमजोर और बीमार रहने लगे| शरीर की कमजोरी से काम भी ठीक से कर पाना मुश्किल होता गया  भाई मोहम्मद मुर्तजा और बहन समीना परवीन इधर काफी दिनों से बीमार चल रहे थे अक्सर खाना न मिलने से उनकी अतडी सुख गयी थी शरीर पर केवल चमड़ी का खोल रह गया था मांस बिल्कुल गल चुका था| जिस दिन कोई कमाई नही होती थी तो हमारा परिवार  यदि आसपास के कोई मददगार कुछ दे देते थे वही खा कर वह दिन गुजार लेता था|  
 माँ नाजरा ने बीमार भाई को कौड़िया अस्पताल  (रामकृष्ण मिशन ट्रस्ट चिकित्सालय) में इलाज के लिए भर्ती कराया था लेकिन वहां भी उसका इलाज सही तरीके से नही चला| भाई और परिवार वालो के साथ अस्पताल कर्मियों का व्यवहार ठीक नही था, न ही  ठीक से कोई सलाह दिया था उन्होंने  हमें बी. एच. यू.के लिए रेफर कर दिया गया| हमारे पास वहां जाने के भी पैसे नही थे इसीलिए हम घर  आ गये,  थोडा बहुत जो दूसरों से मांग कर ले गये थे वह भी खर्च हो चुका था| कितने दिन हम दूसरों के सामने हाथ फैलायें पड़ोसी भी कितना देंगे उन्हें भी तो कम आमदनी में घर चलाना है| जिस दिन कोई कमाई नही होती थी तो यदि आसपास के कोई मददगार कुछ दे देते थे वही खा कर हमारा परिवार वह दिन गुजार लेता था|  
एक ही दिन में परिवार के दो बच्चों की दर्दनाक मौत के बाद शाम चार बजे के समय उपजिलाधिकारी घटना का जायजा लेनें  पहुच सके| सुबह एपेड़ेमिक सेल के क्षेत्र प्रभारी डा. गुलाम साब्बिर परिवार में आकर पेट दर्द, पानी ध्यान के इंफैक्शन से बचाव व क्लोरिन की गोलियां दे गये | जबकि अभी भी परिवार की एक बेटी नाजिया परवीन को तेज बुखार था लेकिन उन्होंने बुखार से राहत के लिए कोई दवा देना मुनासिब नही समझा | जब समिति  (PVCHR) की एक सदस्या द्वारा फोन पर इस सन्दर्भ में बात की तो उन्होंने कहाकि वे जब शाम को CMO कार्यालय से लौटेंगे तब दवा लेकर आयेंगे | इस बीच करीब दो बजे दोपहर में मानवाधिकार जननिगरानी समिति के कार्यकर्ताओ द्वारा नजदीक के प्राइवेट अस्पताल में बुखार से राहत के लिए दिखाया जंहा डाक्टर की सलाह पर नाजिया का एक्सरे, खून की जांच कराया गया, नाजिया को तेज बुखार सीने में दर्द और खांसी की शिकायत थी | डाक्टर की सलाह पर उसे पैरासिटामोल, एंटी बायोटिक व ताकत की दवाएं दी गयी |
14 मई तक गरीब साबित करने वाले सभी नियम कानूनों को दरकिनार कर जिला प्रशासन द्वारा अब्दुल खालिक की विधवा नाजरा खातून को अन्त्योदय राशन कार्ड (BPL Card ), बुनकर कार्ड, कांशी राम आवास, एक कुंतल गेहूं, एक कुंतल चावल, पच्चीस लीटर केरोसिन तेल दे दिया गया है , लेकिन यह तब मिला जब नाजरा अपने तीन बच्चों और पति को हमेशा के लिए खो चुकी है |   
ध्यान देने वाली बात यह की बजरडीहा में केवल यही परिवार नही जिसकी ऐसी हालत है बल्कि सैकड़ो परिवार आर्थिक तंगी और बदहाली से जूझ रहे है | हमारी राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से इस क्षेत्र में कुछ विशेष प्रकार के कार्यक्रम चलाये जाने की आवश्यकता है ऐसे में इस क्षेत्र में सघन और ईमानदार तरीके से काम करते हुए आर्थिक रूप से गरीब और टूटे हुए लोगों को सामाजिक विकास की योजनाओं संतृप्त करना होगा जिससे  बनारसी साड़ी की सनत को अपनी मेहनत से जिन्दा रखने वाले बुनकर कलाकारों को भी सम्मान से जीने का मौका मिल सके |
  1. पोषण मिशन के तहत वाराणसी को उत्तर प्रदेश के हाई अलर्ट जिलो में शामिल किया जाय | 
  2. प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यको के लिए चलाये जा रहे पन्द्र्ह सूत्रीय कार्यक्रम को जिले में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सघनता से चलाया जाय |
  3. बजरडीहा क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जाय |
  4. क्षेत्र में बदहाल सफाई व्यवस्था का मुल्यांकन करते हुए व्यवस्था ठीक किया जाय एवं संक्रामक रोगों से बचाव के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये जाए |
  5. बजरडीहा के निम्न आर्थिक स्तिथि वाले बुनकरों की वास्तविक रूप से पहचान कर उन्हें अन्त्योदय और गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड दिया जाय |
  6. बुनकर पहचान पत्र से छूटे हुए बुनकरों का कैम्प लगाकर बुनकर पहचान पत्र बनाया जाय |
  7. समेकित बाल विकास परियोजना के अंतर्गत चलाये जाने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या आबादी के अनुसार बढायी जाय एवं साथ ही उनके द्वारा दी जा रही सेवाओ की गुणवत्ता का मुल्यांकन लगातार किया जाय  |
  8. क्षेत्र में संचालित  एक मात्र प्राथमिक विधालय  की संख्या बढ़ा कर और सरकारी विधालय खोला जाय |
  9. स्वास्थ्य बीमा (लोम्बार्ड कार्ड) से छूटे बुनकर परिवारों को जोड़ा जाय |
  10. सरकारी राशन के दुकानों की संख्या बढाई जाय एवं दुकान खोलने के समय एवं घंटे निर्धारित मानकनुसार संचलित हो |






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