PVCHR initiative supported by EU

Reducing police torture against Muslim at Grass root level by engaging and strengthening Human Rights institutions in India

Saturday, December 28, 2013

Interface and Meeting with Parliamentarians and Different Political Parties Leaders on 9 December, 2013 at Constitution Club, New Delhi

Interface and Meeting with Parliamentarians and Different Political Parties Leaders

नई दिल्ली, 9 दिसम्बर, 2013 मानवाधिकार कार्यकर्ता दिवस एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस 10 दिसम्बर की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली के रफी मार्ग स्थर्त कान्स्टीटूशन क्लब के स्पीकर हाल में मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) एवं ह्यूमन राईट्स ला नेटवर्क (HRLN) के संयुक्त तत्वाधान में उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक मुस्लिमो के मुद्दे पर विभिन्न राजनैतिक पार्टियों एवं सांसदों के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया | इस मौके पर मुस्लिम और पुलिस : एक परिप्रेक्ष्य” (Muslim and Police : a perspective) डाक्यूमेंट्री फिल्म को रिलीज एवं “Repression, Despair and Hope” (mapping of police torture in four districts of Uttar Pradesh and strengthening human rights institutions ) Respect Survivor & Abolish Torture नामक रिपोर्ट का विमोचन किया गया | इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के चार जिलो अलीगढ़, मेरठ, मुरादाबाद और वाराणसी के पुलिसिया अत्याचार के 1000 मामलों को फैक्ट फाईंडिंग का विश्लेष्णात्मक अध्ययन को प्रकाशित किया गया | इस संवाद कार्यक्रम में देश के विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रमुख और सांसद शामिल हुए |
संवाद कार्यक्रम का विषयवस्तु मानवाधिकार जननिगरानी समिति के निदेशक डा0 लेनिन रघुवंशी ने रखते हुए बताया कि दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे हमले सांगठनिक हिंसा, पुलिसिया अत्याचार लोकतंत्र के ऊपर खतरा है | सांझा संस्कृति व धर्मनिरपेक्षता की परम्परा को मजबूत करने की दिशा में भारत में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के मुसलमान नागरिको पर पुलिसिया अत्याचार साम्प्रदायिक हिंसा के रूप में होने वाले हमलों पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति  एवं ह्यूमन राईट लॉ नेटवर्क द्वारा विगत 3 वषो में संयुक्त रूप से तकरीबन 1500 मामलों पर सघन फैक्ट फाईंडिंग करते हुए हस्तक्षेप किया गया है और उन तथ्यों और पैरवियो के अनुभवो  पर “Repression, Despair and Hope” विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट तैयार किया गया | उन्ही अनुभवों को रखते हुए उन्होंने आगे बताया कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम के एक जैसे केस थे जिसमे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गैर मुस्लिम को राहत पहुचाई और मुस्लिम केस में कोइ भी कार्यवाही नहीं की | यह बात राजनैतिक पार्टियों से बिलकुल अलग है क्योकि इसमे प्रशासन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है | ये लड़ाई साधारण नहीं है | यह कौम और मुल्क को बचाने की लड़ाई है | हम लोगो ने इस लड़ाई के जरिये बनारस में दंगे नहीं होने दिया | उत्तर प्रदेश की पुलिस मुसलमानों से बिलकुल अलग व्यवहार करती है | पुलिस वाले भी इंसान है लेकिन क्या वर्दी पहनने से उनकी इंसानियत बदल जाती है |
कार्यक्रम में उपस्थित योजना आयोग की सदस्या सईदा हमीद, सभी राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधि और विभिन्न दलो के सांसदों ने पुस्तक का अनावरण किया जो मुस्लिमों के उपर 1000 मामलो को एकत्रित किया है |
आज एक ख़ास दौर है जब साम्प्रदायिकता की लहर चल रही है | मीडिया को भी बदलने का प्रयास चल रहा है | लेकिन पत्रकारिता में भी कुछ ऐसे मजबूत और इमानदार लोग है जो तमाम मुश्किलों को झेलते हुए भी आज निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे है और समाज में उनकी एक अलग पहचान है | ऐसे ही उत्तर प्रदेश के जाने माने पत्रकार दैनिक जागरण लखनऊ के विशेष संवाददाता श्रीपरवेज अहमद और जनासंदेश टाइम्स वाराणसी के उप सम्पादक श्री विजय विनीत को उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के क्षेत्र में अतुलनीय प्रयास के लिए जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया |
कार्यक्रम में उपस्थित सामाजिक संस्था क्राई के जनरल मैनेजर शुभेन्दु जी ने सभी का स्वागत किया और मुस्लिम बच्चों के मुद्दे संसद में उठे इस बात पर जोर दिया | मुस्लिम देश की कुल आबादी 40 प्रतिशत है, आदिवासी के बाद मुस्लिम के बच्चों में कुपोषिण की संख्या बढ़ती जा रही है | उन्होंने अपनी रिपोर्ट के आधार पर बताया कि देश में 54% प्रतिशत बच्चें 5 साल की आयु पूरी नहीं कर पाते है | 60% प्रतिशत मुस्लिम बच्चें टीकाकरण से दूर है | 8 में से 1 मुस्लिम बच्चे स्कुल से बाहर हो जाते है | मुस्लिम बच्चे साढे तीन साल के बाद गरीबी के कारण स्कुल छोड रहे है | इसलिए गुणवत्तापूर्ण सरकारी स्कूल मुस्लिम बच्चो के लिए खोला जाए | साथ ही उन्होंने यह अनुरोध किया संसद में यह मुद्दा उठना चाहिए |
कार्यक्रम में उपस्थित कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने सभी का इस्तकबाल करते हुए खुशी जाहिर किया कि उन्हें यहाँ बुलाया गया | ऐसा नही कि हम पहली बार एक जगह इकट्ठा बात कर रहे है | किसी राजनैतिक पार्टी के रूप में नहीं बल्कि एक भाई के रूप में दिल से बात करुगा | बड़े दुःख की बात है कि सियासी पार्टी में मुस्लिम लोगो का इस्तेमाल सिर्फ 5 वर्ष में एक बार होता हैं | इसके जिम्मेदार हम भी है | जब तक हम आंख खोल कर फैसला नही करेगें हमारे अपने हालात नहीं सुधरेंगे इस लिए आँखे खोलकर फैसला कीजिए | मेरे एक भाई कह रहे थे कि  उत्तर प्रदेश के अन्दर फर्जी मुकदमें में बन्द हुए है | हर जगह पूरे प्रदेश में यह मसला है | अगर मै गुजरात से लेकर मुजफ्फरनगर की बात करू तो आपको और मुझे बेहद तकलीफ होगी जख्मों से निकलने वाले पीप न तुम देख पाओगे न हम देख पायेगे | यह बहुत जालिम दुनिया है | कमजोर कौम कमजोर लोग कमजोर आदमी की इज्जत नही करती है | सद्दाम कमजोर था अमेरिका की ताकत मजबुत थी । खास बकरा ईद के दिन उनको फासी दी गयी | पिछले 70 साल से हमने अपने बीच से कोइ लीडर नही पैदा किया | मौलाना अब्दुल कलाम की बात अभी तक नही मानी यह कौम अपने आप को नही समझ पा रहा है |  हर कौम ने अपना लीडर पैदा किया लेकिन हमारी कौम ने कोइ भी लीडर पैदा नहीं किया | आप अपनी ताकत पैदा करे जिससे आप अपनी मुस्तकबील खुद करें।
कार्यक्रम में उपस्थित जनता दल यूनाईटेड के अली अनवर ने कहा कि जब फिल्म दिखाया जा रहा था तो ऐसा लग रहा था कि मेरे परिवार में घर की मेरे भाई की कहानी दिखाई जा रही है | हमारे मुसलमान भाई से पहले डा0 लेनिन खबर देते है | जैसे बजरडीहा में कुपोषित बच्चे मरे तो सबसे पहले डा लेनिन ने इसकी पैरवी की और मामले को प्रकाश में लाये | आजमगढ़ में ऐसे लोगों की आज जरुरत है | हमारी कमजोरी यह है कि हम मसलक में बटे है | यह बीमारी हमको अपने मुआसरे को ठीक करना है | तो जो घुन की तरह हमें चाट रही है हमे उसे छिपाना नही तथा दुसरो पर थोपना नही होगा अगर हम अपनी बीमारी छिपायेगे तो वह नासुर बन जायेगी | आपने अपने फिल्म में देखा कि किस तरह RSS और किस तरह मुस्लिम लीग बनी मजहब की बुनियाद पर मुल्क का बटवारा मत करो सरहद के इस पार कुछ उस पार सबको सियायत पाने की जल्दी है | पाकिस्तान के मुस्लिम से ज्यादा अच्छे हम हिन्दुस्तान में है | यदि मजहब के नाम पर सियासत करेगे तो हम भी खत्म हो जायेगे | सारे मुसलमान को एक करने की बात करोगे तो हिन्दु भी एक करने की बात कहेगे जज्बाती बात कहके हमको कदम नही उठाना है, नही तो सब खत्म हो जायेगा | हमे एकता की लडाई लडना है | आजादी के 65 साल में लोगों का चाल चलन और नीति देखा है | हमकों दर्द का रिश्ता कायम करना होगा हमारे जैसे और गरीब लोग चाहे वह उस धर्म का हो या किसी भी मजहब का हमे उसके साथ खडा होना है | रंगनाथ मिश्रा ने सिफारिश की है कि दलित मुस्लिम की बात कही है |
सांसद मोहम्मद अदीब जी ने कहा कि ऐसे वक्त में जब पुलिस कम्यूनल हो जाये तो इस वक्त का माहौल है कितना भयानक होगा | इस समय हालत यह है कि पुलिस किसी भी नौजवान को सन्देह के आधार पर जेल में बंद कर देती है और  15 वर्ष जेल में रहने के बाद यह सामने आता है कि इन्होंने कुछ नही किया वे निर्दोष है और उन्हें छोड़ दिया जाता है | वह 15 साल उसे कौन लौटाएगा यह कहाँ का न्याय है यह मुल्क जहन्नुम बन गया है | 65 साल के बाद भी मुजफ्फर नगर में जब दंगा हुआ तो कहा गया कि जाओं 5 लाख लो अपना बचपन और जवानी मत बचाओ | क्या आज देश में दंगे के रोकथाम के लिए कुछ नहीं किया जाएगा केवल मुआवजा के ऐलान करने के ? सपा ने कहा था कि सरकार आने के बाद स्पेशल कोर्ट बनाकर निर्दोष मुसलमान युवको को बरी किया जाएगा | हम कहते है कि अगर वह मुजरिम है तो उसे सजा दो, यदि वह निर्दोष है तो उसे जेल भेजने वाले अधिकारियो को सजा दो | हिन्दु मुस्लिम को मिलकर चलना पडेगा | 15 अगस्त की रात में मुल्क को दोनों पार्टी ने दो हिस्सा में बाटा इल्जाम हमें मिला कि हमने मुल्क को बाटा यह सियासी पार्टी हमें क्यों निचा दिखाती है | मुझे बहुत अफसोस है इस बात का कि जिन्दगी गुजर गयी | यह मुल्क हम पर ऐतबार कर ले जो हाथो के काम करने वाले थे वह घर पर बैठ गये तालीम और इज्जत में पिछड गये | कोई ऐसा महात्मा लाओं जो इस मुल्क को बचा सकें।
कार्यक्रम में उपस्थित कमाल फारुखी ने कहा कि हिन्दु और मुसलमानों में इस समय जो तकलीफ है वह दंगो के कारण है, दोनों समुदाय उतनी ही पीड़ा झेल रहा है | मुजफ्फनगर में जो इस हुकुमत में हुआ है उससे हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय परेशान है | जिनके माँ-बाप को मारा गया है जिनके बच्चियों के साथ रेप किया गया है | मुजफ्फरनगर दंगे के बाद राहत शिविर में 40 बच्चें 2 दिन के अन्दर खत्म हो गये | कुछ लोगों ने घर जाने की कोशिश किया तो उन्हें मार दिया गया | सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा कि मुस्लिम को मुआवजा क्यों हिन्दु को क्यों नही ? गुजरात के वाक्या आज भी हमारे सामने है | फसाद कराने में जिन लोगो का नाम आ रहा है उन्हें पार्टियों द्वारा सार्वजनिक रूप से सम्मानित करके घाव को और उकेरा जा रहा है और लोगो के बीच दरार डालने का काम किया जा रहा है | मै इस मंच के माध्यम से कम्युनल वायलेंस बिल लाने का आह्वान करता हूँ यहाँ पर कई पार्टियों के सांसद मौजूद है मै उनसे अनुरोध करता हूँ कि वो सभी अपने स्तर से अपनी पार्टियों को यह बिल लाने के लिए प्रेरित करे |
कार्यक्रम में उपस्थित बसपा के वरिष्ठ नेता दद्दू प्रसाद ने कहा कि मानवाधिकार की इस दुनिया में पहली बार यह रेखा खीची 1600 वर्ष से पहले हजरत मुहम्मद साहब ने मानवाधिकार को बराबरी और 2500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध ने खीची थी | इसलिए आज मै इस कार्यक्रम के संयोजक को सराहुँगा कि इस मौके पर जब देश में दंगे हो रहे है इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है | 600 वर्षों तक मुसलमान को हुकुमत करने का मौका मिला आज आजादी के 66 वर्ष बाद हुवही मुसलमान हुक्कमरानो के उपेक्षापूर्ण रवैये का सामना कर रहे है | जब अग्रेज देश छोड गये मुस्लिम 35 प्रतिशत नौकरी में थे आज 2 प्रतिशत हो गया है | क्या पहले योग्य थे आज अयोग्य हो गये | मुझे बहुत डर लगता है कि आप कह रहे है हमारे शिक्षा का स्तर गिरा है | जब मैं सरकारी नौकरी की बात छेडी है । तो सरकरी नौकरी रोजगार का साधन नही है | प्राइवेट में रोजगार है | भारत के व्यूरोक्रेसी में सरकारी नौकरी में केवल रोजगार नही सत्ता में बराबर का हक से है | मोहम्मद साहब ने यह पैगाम हिन्दुस्तान को दिया जो जिल्लत है जिन्दगी से छुटकारा पाने के लिए कलमा पड़कर कबुल किया | मैं जिस दल से मतलब रखता हूँ काशीराम जी ने कहा कि तुम जिसका गला काटने जा रहे हो वह तुम्हारे भाई है | माइनारिटी स्पेशल एक्ट बनाया जाय | हमारे प्रशासन और शासन के अन्दर सही नुमाइन्दे नेचुरल लीडर को हटा दिया जाता है | चापलुस को चमचे को जीता दिया जाता है | दंगा, गरीबी, अशिक्षा जो हमारी समस्या है | हमारी शासन प्रशासन में भागीदारी है | शिक्षा में भी हमें खड़ा होना है |
कार्यक्रम में उपस्थित भारत के सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व राईट लावालीहुड अवार्ड विजेता स्वामी अग्निवेश ने कहा कि जब मै बिस्मिल्लाह हिररहमाने रहीम कहता हूँ तो कुछ लोग कहते है कि ॐ भुर्वभुवस्व: क्यों नहीं कहते | मै कहता हूँ दोनों का मतलब एक ही है | दाढ़ी आगे होती है तो मुस्लिम और पीछे हो तो हिन्दू | मैं अपने को हिन्दु नही कहता है मै मानवतावादी हूँ वेदो उपनिवेषों से यही प्रेरणा मिली है कि इंसान को इन्सान समझो | मैं पत्थर के खदानों में काम करता हूँ बधुआ मजदूरो को छुडाता हूँ | हम गरीबों की आवाज उठाने के लिए आगे आये | शाम को जब माँ बच्चें को गोद मे लेती है बच्चा रोता है तो माँ बोलती है कि आज मजदूरी नही मिली है इसलिए कल रोटी मिलेगी | माँ मैं तुमसे रोटी मांगता हूँ तो तुम मुझ को मारती हो माँ का दिल उस समय हिन्दु और मुस्लिम का दिल नहीं होता वह तो बस रोता है | मुझे लगता था इनकलाब आएगा लेकिन अभी सब अलग है दूर-दूर है | मै सब जगह जाता हॅू और देखता हॅू कि गरीब के साथ हर जगह जुल्म होता है | अम्बडे़कर जी कहना है कि गुलामी को सिर्फ थोड़ी सी उनकी गुलामी के बारे में बता दो तो वह लोहा बनकर खडें हो जाये | जब मजहब के नाम नेता बनेंगे तो हमें धोखा मिलेगा। जिन-जिन लोगों ने वादा किया था कि हम जात पात मिटा देगें वह भी नहीं कुछ कर पाये काफी गैप हो गया | इसी तरह मुसलमानों में भी  एक होने की बात कही गयी लेकिन सिर्फ नमाज में ही उन्हें बराबरी का दर्जा मिलता है बाहर आकर इसी तरह वह बता देता कि उनमें कितना फर्क है | दलित ईसाई की बात हमने सुनी लेकिन दलित मुसलमान अभी तक नहीं सुना | राशिद अल्वी ने कहा कि तुम मुसलमानों को अपना नेता चुनो बहुत नेता चुना अब्दुल कलाम के बाद कोई और नेता नहीं चुना | सूरज की धूप के सबके लिए बराबर है जिस हवा में आप सास लेते है सब बराबर है जो कुदरत की चीज है उसमें जो आदमी बनाता है वहीं उसे बाटता है | 4 नवम्बर को मुजफ्फरनगर में गया 75% मुसलमानो की हालत को बिगाड़ा गया | आप जानते है कि कौन हिन्दु और मुस्लिम की पार्टी है | हमे और आपको मिलकर इस गन्दी सियासत को नकार सकते है | 20 साल हो गये मालयाना,  मेरठ में 45 प्रतिशत मुसलमानो को PSC ने नहर के पास गोली मारकर उड़ाया | अभी तक केस चल रहा है कोई न्याय नहीं मिला | हम लोगो ने मानवता को बचाने और आपसे प्रेम बढाने के लिए 1 जनवरी से मानव श्रृखंला हरिद्वार से दिल्ली तक बनाने का फैसला किया है | जिन्होंने सियासत की रोटी मुजफ्फरनगर में सेकी है उन्हें हम रिजेक्ट करने का तरीका अपनायेंगे |
                कार्यक्रम में उपस्थित शफीकुर्ररहमान ने कहा कि इस सच्चाई से कोइ इन्कार नहीं कर सकता कि मुस्लमानों के साथ नाइसाफी होती है | मुजफ्फरनगर में जो हुआ वह सबके सामने है मौजुदा हालत इस बात की मुस्तजबी है जब तक हम अपना मुस्तजबी नहीं बनाये मुसलमानों का नुकसान 100 प्रतिशत हुआ | ऐसे लोग है जिनके पास सोने के लिए मकान नहीं है और न खाने के लिए रोटी और न पहनने के लिए कपड़ा ही है | मुसलमानों को साथ लिए बिना देश नहीं चल सकता | देश की आजादी के लिए मुसलमानों ने भी बहुत कुर्वानिया दिया है | हमसे वाफादारी का सर्टीफिकेट माँगा जाता है हमने कभी नाइंसाफी नहीं की |
कार्यक्रम में उपस्थित चिन्तन सभा के माध्यम दीपक मिश्रा ने कहा कि हर दृष्टिकोण से बहुत बाते रखी गयी न तेरा है न मेरा है यह हिन्दुतानी सब का है | 21वीं सदी मे हम आ गये आज भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान बम बनाता है और अमेरिका और जर्मनी में फटता है | मौलाना अब्दुल के किताब में कहा गया था कि हमें अपने आप को बदलना होगा अस्फाक उल्लाह, राम प्रसाद बिस्मिल मुसलमान के पूरखे थे | सत्ता का एक चरित्र होता है और एक चेहरा होता है जो एक अच्छा इंसान नहीं हो सकता है जो अच्छा हिन्दू और मुस्लिम नहीं हो सकता है | कहा है कि आज हिन्दुतान 135 देशों से पीछे है लेकिन जनसंख्या के हिसाब से दुसरे स्थान पर है अगर आप धर्मनिपेक्ष नहीं है तो एक अच्छे देश की कल्पना नहीं कर सकते है |  बहुत ऐसे मुस्लिम है जो हमारे दोस्त है दुनिया के किसी हिस्से में दर्द हो उसे हमें महसूस होना चाहिए | भगत सिंह से कहा गया फासी पर चढ जाओंगें कल का सूरज नहीं देख पाओगें तब वह बोले कि कल के बच्चों को सूरज दिखाएगें जब तक गरीब और अमीर की बीच की दूरी नहीं खत्म होगी तब तक अच्छा हिन्दुतान नहीं बनेगा।
कार्यक्रम में उपस्थित समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व उत्तर प्रदेश शासन में टेक्नीकल एजुकेशन एड्वाईसरी बोर्ड के अध्यक्ष बहादूर सिंह यादव ने कहा कि बहादूर शाह जफर की भी बात आयी और सम्प्रदायिकता की भी बात आयी | यदि धर्म के आधार पर यह राष्ट्र बनता है तो ईराक और ईरान एक धर्म के मानने वाले देश है वहा पर कितनी लड़ाई हुई कितने बच्चें दफ़न हुए | 1965 में जब भारत और पाकिस्तान की लड़ाई हो रही थी तो गाजीपुर के वीर अब्दुल हमीर अपने देश के लिए लड़ रहे थे | डा0 लोहिया ने कहा था कि बलिदान और राहत की आधी जहाँ चलेगी विकास वहीं होगा |
कार्यक्रम में उपस्थित सीपीआई के वरिष्ठ नेता व राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने कहा कि सभी राजनैतिक साथियों ने कुछ न कुछ मुद्दो को रेखांकित किया परन्तु मानवाधिकार को जानना भी बहुत जरूरी है | 67 साल की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश से 68 मुस्लिम नेता चुने गये तो क्या हालत सुधर गये इसकी वजय क्या है ? जजबात की बात बहुत बार होती है मै इसे महत्व नहीं देता हॅू | मेरठ में कैची उद्योग क्यों खत्म हो गया है, मुरादाबाद में नक्काशी क्यो खत्म हो गयी, फिरोजाबाद की चूड़ी, अलीगढ़ की ताला क्यों बंद हो गया उसका लिंक नहीं मिल रहा है जो करधे पर हाथ चलाता था वह कहा चला गया | अगल-बगल सब चारो तरफ देशो से घिरे है जो धर्म आधारित है आखिर कब तक हम इससे बचेगें हम सबने मिलकर ब्रिटिश सामाराज्य के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी लड़ी वह आज बट गयी है | हिन्दुस्तान का बटवारा बहुत आसानी से नहीं हुआ था जिसे हम आज झेल रहे है |
कार्यक्रम के अंत में डा0 महेन्द्र प्रताप जी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हम इसी एकजुटता से इस लड़ाई और संघर्ष को जारी रखेगे |
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व अवधनामा के वरिष्ठ सम्पादक उत्कर्ष सिन्हा जी एवं परमार्थ के संस्थापक श्री संजय सिंह ने किया |













Friday, December 27, 2013

23 दिसम्बर को दोपहर के समय मुजफ्फरनगर शाहपुर कैम्प से दंगा पीडिता मैहरुनिसा का मुझे फोन आया, कि हमें कैम्प से जबरजस्ती हटा दिया गया है, हमारे पास रहने का कोई ठिकाना नही है हम कंहा जायें ? खुदा के वास्ते आप हमारी कुछ मदद कीजिये, हमें आपके मदद की जरूरत है | मैहरुनिसा रो रोकर बार-बार मदद की गुहार लगा रही थी वह बार बार कह रही थी की इतनी ठंढ में मैं कंहा जाऊ ? इस समय मैं इसी गावं के गोकुलपुर में एक मकान के बाहर बरामदे में अपने छोटे-छोटे बच्चों और सास के साथ हूँ | मेरे जैसे कई परिवारों को मदद की जरूरत है जिनका कोई ठिकाना नही है | मदरसे वालों ने हमारा टेंट अचानक ही उजाड़ दिया, हम गुहार लगाते रहे उन्होंने हमारी एक नही सुनी | हमने इस घटना की सूचना तुरंत ईमेल और डाक द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री. अखिलेश यादव जी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, और केंद्र सरकार को दिया और उनसे अविलम्ब इन दंगा पीडितो की सहायता के लिए हस्तक्षेप की अपील की |
हमारी चार सदस्यी टीम, जिसमें डा. लेनिन रघुवंशी (निदेशक मानवाधिकार जननिगरानी समिति), मेरठ के सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेजर डा. हिमांशु सिंह, मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद ताज और मैं श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल, उत्तर प्रदेश) 21 दिसम्बर 2013 को शाहपुर गाँव के इस्लामिया मदरसे के खुले आसमान के नीचे अस्थाई रूप से बनाये गये कैम्प में मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित परिवारों से मिलने पहुचे | इनमें से कई परिवार कंही जा चुके थे | जो रह गये, वे मुख्यतः दिहाड़ी, मजदूर ईट भट्ठा मजदूर रह गये थे | जिन्हें 23 दिसम्बर को जबरिया उजाड़ दिया गया और कहा गया कि आप अपने घर लौट जायें | सवाल यह है यह मजदूर कंहा जाये जिन गाँवो से इन परिवारों ने भागकर अपनी जान बचायी, वंहा दहशत से वे जाना नही चाहते | वंहा उनके रहने का भी कोई ठिकाना नही रहा, जो कुछ था वह अराजकतत्वो द्वारा छिन्न भिन्न कर दिया गया | लोगों ने बताया कि हमें सरकारी गाड़ी में सर्वे कराने हमारे गाँव ले जाया गया था जब हमने अपने घरों की हालत देखी थी | कुछ के घरों के छत भी उतार लिए गये हैं, उन्होंने कहाकि हमारा घर अब घर नही रहा | हम वंहा जाकर क्या करेंगे, जंहा जान पर बन आयी हो |
 एक पीड़ित ने स्वव्यथा कथा बताते हुए दर्द भरे आवाज में कहाकि, 7 सितम्बर को मन्दौर की उस पंचायत ने हमारी जिन्दगी बदल दी इसके पहले हम अपने गाँव में कई पुश्तों रह रहे थे, हम ठहरे मजदूर हमें जो कोई मजदूरी के लिए बोलता या काम देता हम वही करके अपनी जिन्दगी गुजार रहे थे | लेकिन पंचायत में क्या हुआ ? उसके बाद ही जाटो और मुसलमानों में झगड़ा हो गया, जिसमें दो जाट मारे गये जिनकी लाशें गावं में आने के बाद कोहराम मच गया जाटो का समूह हमें अपने घरों से भगाने पर आमादा हो गये | अगर हम जैसे तैसे भाग कर अपनी जान न बचाते तो मार दिए जाते | वे लोग जो हमारे साथ इतने सालों से प्रेम से रहते आये थे वही हमें जान मारने काट डालने की धमकी दे रहे थे | उनकी आँखों में आग उबल रहा था और हाथों में लाठी डंडे, चापड़ या जो कुछ हथियार या औजार मिला वही लिए थे | हम कुछ समझ ही नही पा रहे थे कि क्या और क्यों हो रहा है | बस हर कोई अपना अपने परिवार की जान किसी तरह बचाने के लिए भाग रहा था | जिसका मुहँ जिस दिशा में उसी तरफ भाग रहा था | हमने कुछ देर और की होती तो हमारी लाशें मिलतीं वंहा | हमें तो हर तरह से दर्द झेलना था हमारे बच्चे हमारे सामने मारे जाते तो भी हम तडपते और हम मारे जाते, तो भी अपनी जान खोने की तडप होती |
शाहपुरा इस्लामिया मदरसे के इस कैम्प में दंगा प्रभावित अलग-अलग गावों सिसोली, हडौली, काकडे, सोरम, गोइला आदि के तीन सौ परिवार रह रहे थे | अब भी वंहा बयालिस परिवार टेंटो में थे जो 23 दिसम्बर को खदेड़ दिए गये | इन परिवारों में पांच गर्भवती महिलाये - अफसाना उम्र 19 W/o वाजिद , 2. परवीन उम्र 30 W/o असलम, 3. शमसीदा उम्र 30 W/o आस मोहम्मद, 4. संजीदा उम्र 26 W/o महबूब, 5. मोमिना उम्र 30 W/o दिलशाद थीं जिन्हें छ: से सात माह का गर्भ था |
काकडे गाँव की शहजाना (उम्र 30 पत्नी कामिल) जो ईट भट्ठा मजदूर है वह जिस दिन गाँव से अपनी और अपने परिवार की जान बचाते हुए भागकर कैम्प में आयी | उसी दिन उसे लडकी पैदा हुई, ऐसे में सास ने ही प्रसव कराया | आठ दिन बाद बच्ची निमोनिया से पीड़ित होकर वह गुजर गयी | दवा ईलाज के लिये अपने पास से हो सका किया, लेकिन बच्ची नही बची |  शबाना (उम्र 20 पत्नी नफीम) को कैम्प में आने के दो महीने बाद लडकी पैदा हुई, वह भी निमोनिया से पीड़ित होकर एक हफ्ते बाद गुजर गयी | परवीन (उम्र 30 पत्नी असलम) ने बताया कि, हम कलेजे पर पत्थर रखकर कैम्प में रह रहे हैं | जब हम किसी जरूरत का सामान लेने के लिए आसपास के दुकानों में जाते हैं तो लोग बाग हमें देखकर बोलियां बोलते हैं, की ये लोग कैम्प में कम्बल और राहत के सामानों के लालच में पड़े हैं इनकी तो मौज है हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं | यंहा हम इनकी शरण में हैं क्या कहें, खुदा किसी को ऐसे दिन ना दिखाए | रात में हमारे चूल्हे में कुत्ते के बच्चे आकर सो जाते हैं और सुबह उसी चूल्हे में हम खाना पकाते है हमारा ईमान भी खराब हो रहा है लेकिन खुदा सब देख रहा है वह हमें माफ़ करेंगें |  
हडौली गाँव की मैहरुनिसा ने हमें बताया की दंगे में मेरे पति सत्तार लापता थे मैं मेरी सत्तर वर्षीय बूढी सास शरीफन रह रहकर बेचैन हो जाते कि उनका क्या हाल होगा ? कंहा होंगे ? सात दिन बाद खतौली में उनका पता चला जब उनकी कहानी सुनकर हमारे पाँव तले जमीन खिसक गयी | जब शाम को मेरे पति जब फेरी के कपड़े बेचकर घर आ रहे थे तो उन्हें तीन जाटो ने उन्हें मोटरसाईकिल से दौड़ा लिया था, वे किसी तरह गिरते पड़ते अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे | लेकिन डाक्टर साहब के दुकान के पास उन जाटो ने मेरे पति को घेर लिया और उन्हें गिराकर उनकी गर्दन पर हथियार से वार करने ही वाले थे कि डाक्टर साहब ने उन्हें रोकने की कोशिश की वे मानने को तैयार नही थे | उन्होंने मारने का कारण भी पूछा, जवाब में उन्होंने कहाकि बस ऐसे ही इसे मारना है | उनके बीच बचाव के बीच ही मेरे पति जान बचाकर भाग निकले | वे डाक्टर साहब भी जाट थे, लेकिन उनकी वजह से ही मेरे पति की जान बच गयी | यदि वे न होते तो शायद मेरे पति मार दिए जाते | हम उनके लाख-लाख शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने उन तीन जाटो को रोका जो मेरे पति को मरना चाहते थे | दहशत से उनकी तबियत बहुत खराब हो गयी थी | अपने नाक की सोने की लौंग और कान का कुंडल बेचकर बहुत दिन ईलाज कराया | अभी भी वे बहुत डरे सहमे हैं, तबियत हमेशा खराब ही रहती है | इसी से उन्हें मेरी बहन ने अपने घर में शरण दिया है | मैं अपनी सास और बच्चों के साथ कैम्प में हूँ, आखिर रिश्तेदारों पर बोझ तो नही बन सकते हैं |
 सिसौली गाँव की छोटी (उम्र 28 पत्नी इदरीश) जिसके तीन माह का बच्ची अक्शा का जन्म यहीं कैम्प में हुआ, दंगे के समय उसका भाई यासीन सिसौली में ही था उसे तलवार से चोट आ गयी थी, जिसका ईलाज शाहपुर में ही कराया | उस समय ईलाज की कोई व्यवस्था नही थी, इस समय वह अपने घर चला गया है उसे कोई मुवावजा भी नही मिला | खातून (उम्र 35 पत्नी नूरहसन) जिसका ढाई महीने का बच्चा है कई ऐसे छोटे बच्चे हैं जिनके देखभाल और ईलाज की कोई सुविधा नही मिली | चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि सोरम, सिसौली, हडौली, और गोइला गाँवो के दस पन्द्रह घरों के जो दंगे पीड़ित शाहपुर कैम्पों में रह रहे थे, उन्हें प्रशासन ने दंगा पीड़ित नही माना | सिसौली और सोरम जंहा अपने खाप पंचायतो के लिए जाना जाता है, विदित है कि वंही सिसौली प्रसिद्ध जाट किसान नेता का गाँव है | महिलाओं ने बताया कि सोरम में उनके कपड़े उतारे लिए गये, उन पर गोलिया चली, तेजाब फेंका गया, किसी तरह से वे जान बचाकर भागे, पुलिस ने भी उनकी पिटाई की | अभी एक दिन पहले ही सोरम में मुस्लिम बच्चों की स्कूल से लौटते समय पिटाई की गयी | हडौली में मस्जिद फूंक दी गयी, वंही दुल्हेरा के हकिमु की बेटी सलेहरा अभी भी गायब है |     
 हमने देखाकि बारिश से कैम्प की मिट्टी गीली हो गयी थी कई जगह पानी भी इक्टठा था, कुछ टेंटो की जमीन में बिछी पुआल भी पूरी तरह गीली थी | महिलाए और बच्चे हमें अपने टेंटो में ले जाकर दुर्दशा दिखाकर अपना दर्द हमें बता रहे थे | उन्होंने बताया की ठंढ में हम रात भर जागकर किसी तरह बिताते हैं, ठंढ के मारे नींद नही आती | ठंढ में हमारे बच्चे ज्यादा बीमार हो जा रहे हैं | दंगे के कुछ दिन बाद एकाध बार दवा मिली डाक्टर आये, फिर कोई नही आया | हमारे तन पर जो कुछ था, उसे बेचकर हम अपने बच्चों का ईलाज कराते हैं | अभी भी कई छोटे बच्चे, नवजात बच्चे और उनकी माँऐ, गर्भवती महिलाए जिन्हें आम तौर पर खास देखभाल की जरूरत होती है वे इस हाड़ कपा देने वाली ठंढ में खुले कैम्पों में जरूरी सुविधाओं के अभावों में रहने को मजबूर हैं |
यूरोपियन यूनियन ने एक लाख पचास हजार यूरो आक्सफेम संस्था के द्वारा मुजफ्फरनगर और शामली के दंगा  पीडितो की सहायता के लिए देने की घोषणा की है | वंही क्राई संस्था बच्चों की मौतों की खबरों को संजीदगी से लेकर सीधे मदद करने का निर्णय लिया है | मुजफ्फरनगर और शामली के के कैम्पों में, (9804) नौ हजार आठ सौ चार बच्चों की गिनती की गयी थी, जिनमें कई बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं | अभी भी कई बच्चे और गर्भवती महिलाए थीं, जिन्हें देखभाल और चिकित्सीय सुविधाओ के आभाव में जूझ रहे हैं जिन्हें मदद की जरूरत है | पिछले ही वर्ष दिसम्बर माह में निर्भया के साथ बलात्कार की घटना पर जंहा देश भर में विरोध और भर्त्सना की गयी | वंही मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित महिलाओ के साथ 5 नवम्बर 2013 तक 13 बलात्कार की घटनाओं पर नागर समाज की आश्चर्यजनक चुप्पी सवालिया निशान है |
मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा कथित छेडछाड की घटना के बाद हत्या कर देने और बाद में छेड़छाड़ की बात न आने की कहानी जंहा एक तरफ हिन्दू फांसीवादी ताकतों के साथ मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों को रेखांकित करती है | सुप्रसिद्ध अमेरिकन चिंतक एडमन बर्के के इस बात को सही सिद्ध करता है कि “ इस देश में धर्म का कानून, जमीन का कानून, इज्जत का कानून सब मिलाकर एक साथ एक पुरुष के कथित आध्यात्मिक कानून से जुड़ा है जो उसकी जाति है ” |
चूँकि वर्तमान में शासन के निर्देश पर प्रशासन द्वारा जबरिया कैम्पों में रह रहे दंगा पीड़ितों से कैम्प खाली कराया जा रहा है, जिनका घर-बार उजड़ चुका है और अपने गाँव में भी उनकी कोई पुश्तैनी सम्पति, ठौर ठिकाना साथ ही एक नागरिक के हैसियत की बुनियादी सुविधाए और कल्याणकारी योजनाओं (राशनकार्ड, मनरेगा-जाबकार्ड) से कोई सम्बधता नही है, ऐसे परिवार दर–दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं | दंगा प्रभावित गांवो से दंगे के कारण विस्थापित परिवारों की पहचान कर उनकी खाद्य सुरक्षा, आजीविका, आवास, महिलाओं और बच्चों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाए, बच्चों की प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये जाने की जरूरत है | मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत होंगे कि इन परिवारों को लगातार चिकित्सीय देखभाल की भी आवश्यकता है क्योंकि मावन मन मष्तिक पर किसी भी हिंसक घटना का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है जिससे उनके अंदर विभिन्न प्रकार की शारीरिक समस्याए पैदा हो जाते हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता और दक्षता, निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास प्रभावित होता है, साथ ही ठंढ के मौसम में इस क्षेत्र का तापमान काफी नीचे होता है जिसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है जब चिकित्सा की विशेष जरूरत है |    
ऐसे में जरूरत है कि विभिन्न राजनैतिक पार्टिया अपनी –अपनी रोटियाँ सेंकने के और जनता को गुमराह करने व एक दुसरे पर दंगे की जिम्मेदारी डालने के बजाय दंगा पीड़ितों के तन से गहरे मन के घावों को भरने के प्रयास में मिलकर काम करें | पीड़ितों के इज्जत, आशा, मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए अविलम्ब बिना किसी भेदभाव के नागरिक अधिकार संरक्षित करते हुए पुनर्वासित किये जाने की लम्बे समय तक कार्यक्रम चलाना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बल के पहल को महत्व देना होगा |

श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल, उत्तर प्रदेश)











Fighting caste discrimination



Caste is one of India’s most enduring institutions and still retains its hold on Indian society. For those not fortunate to be born in the higher echelons of the caste hierarchy, life can be difficult indeed. Despite government efforts, caste discrimination is still rife, and low-caste Indians have to bear the brunt of poverty, illiteracy and violence. Lenin Raghuvanshi is in the forefront of the fight against caste discrimination, to ensure a just and equal society.

Raghuvanshi is the founder of the People’s Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR), which fights for the rights of marginalized people in several North Indian states, especially in the area around Varanasi in Uttar Pradesh.

Raghuvanshi was born in an upper caste family, which he describes as “feudal”. He got a bachelor’s degree in ayurveda, modern medicine and surgery from the State Ayurvedic College in Haridwar. But the social inequities that faced India made him take up the cause of bonded labourers. This is when he noticed that not a single bonded labourer came from the upper caste, and realised that the problem was essentially caste.

In 1996, Raghuvanshi founded PVCHR to fight the caste system. He works to ensure basic rights to vulnerable groups like children, women, Dalits, tribes and minorities. Raghuvanshi and his team works at the grassroots level in Varanasi and around 200 villages in Uttar Pradesh and five other states. PVCHR works to eliminate situations that give rise to the exploitation of vulnerable and marginalized groups, and to start a movement for a people-friendly movement (Jan Mitra Samaj) through an inter-institutional approach.

Raghuvanshi has his task cut out for him since the lot of Dalits and other oppressed minorities continues to be dismal. “In the past, if anyone from the lower caste breached the unwritten law of caste hierarchy, the person would be beaten up in public. Now the person will be shot dead and the village burnt down and the women raped. A bridegroom riding a horse during his wedding, an enterprising peasant digging a well on his land, if a boy falls in love with a girl – do you kill them? Yet, if they belong to the Dalit caste they are killed. We still say that there is rule of law in India,” he said in his acceptance speech while receiving the Gwangju Prize for Human Rights.

He is also concerned about the plight of women and children in this country. “India is still very much a patriarchal and caste-based society with gender discrimination. The destructive effects of gender discrimination, patriarchal oppression and the semi-feudal society so prevalent in 21st century India are manifest in our 55 million children, employed at times in subhuman conditions,” he says in a newspaper interview.

Raghuvanshi received the Gwangju Human Rights Award in 2007. He was made an Ashoka Fellow in 2001 and was presented the International Human Rights Prize of the City of Weimar (Germany) in 2010. Raghuvanshi once said to a newspaper that caste discrimination is so rife in Bundelkhand that a Dalit has to take off his chappal and hold it in his hand if a person belonging to the Thakur caste approaches. It’s not something that would make us proud.
How can you Help?
Caste approaches is not something that would make us proud 



Contact details of the NGO/Institution

Name :  Lenin Raghuvanshi 
Email ID  lenin@pvchr.asia
Contact Number :  9935599333
Address  PVCHR Varanasi, Uttar Pradesh 

Thursday, December 26, 2013

उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़, थाना-सिविल लाइन में एक युवक का दिनदहाड़े अपहरण व जानलेवा हमला की घटना में पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के बावजूद पुलिस द्वारा कोइ भी कार्यवाही न किये जाने के सम्बन्ध में |

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संलग्नक :

1.        पीडिता का अख्तरी बेगम का बयान

 

 

 

भवदीय

डा0 लेनिन

महासचिव

मानवाधिकार जननिगरानी समिति

सा 4/2 ए दौलतपुर, वाराणसी

+91-9935599333 



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